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गणधर
भूमिका।
सार्द्ध
शतकम्।
॥२४॥
निर्माण कर भारतीयों को गौरवान्वित किया, उनका जीवन हमें नूतन स्फूर्ति प्रदान करता है, और आत्मकर्तव्य की ओर हमारा ध्यान आकर्षित करता है, ऐसा कौन स्वाभिमानी भारतीय होगा जो उनके उपकारों को याद कर उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकाशित न करेगा। यहां पर हम इस बात पर जोर देंगें कि भगवान के बाद शासन उन्नायकों में त्यागी ही थे, और आज का समय भी त्यागीयों का ही है. त्यागीयों के पद को त्यागी ही सुशोभित कर सकते है। आभार:-यहां पर हम सर्व प्रथम पंडितवर्य उपाध्याय मुनिराज श्रीमणिसागरजी महाराज-(अब आचार्य)का अत्यन्त आभार मानते हैं, कि जिनकी उदार कृपासे प्रस्तुतः लघुवृत्ति की प्राप्ति हुई। हम आशा करता हैं कि भविष्य में भी आप साहित्यिक सहायता द्वारा हमें उपकृत करेंगे, उपर बतलाया जा चुका है कि, प्रस्तुत वृत्ति की १ ही प्रति० उपलब्ध हुई थीं, अतः उसी पर से संशोधित होकर प्रकाश में आ रही है। इसके संशोधन कार्य में मेरे पूजनीय गुरुवर्य १००८ श्रीश्रीश्री उपाध्याय मुनिश्री सुखसागरजी महाराजने बहूत परिश्रम किया है । कहना चाहिये उन्हीं के प्रयत्न से यह ग्रन्थ प्रकट हो रहा है, इसके के संशोधन समय कई शंकायें उपस्थित हुई, पर उन सभी को बृहद्वृत्ति के सहारे ठीक करने का प्रयास किया गया है, तथापि छद्मस्थावस्था में इसमें कोई प्रकार की स्खलना रह गई हो तोपाठकगण उसे सुधार कर पढ़ें। द्रव्य सहायक:-बैतुल निवासी श्रीमान् कस्तुरचंदजी डागाकी धर्मपत्नी | अ० सौ० श्राविका लक्ष्मीबाई एवं जबलपुरनिवासी स्वर्गस्थ यति श्री मोतीलालजी फंड के व्यवस्थापक श्रीमान् चांदमलजी बुधमलजी बोथरा ने उक्त फंड में से प्रस्तुतः प्रकाशन के लिये जो सहायता की है वे तदर्थ धन्यवाद के पात्र है। क्षमायाचना:-सर्व प्रथम हम उन ग्रन्थ रचयिता और प्रकाशकों को धन्यवाद देना अपना परम कर्तव्य समझते हैं जिन से हमने प्रस्तुतः भूमिका लिखने में बहुत सहायता ली है। उपरोक्त भूमिकामें कोई प्रकार की यदि स्खलना रह गई हों तो पाठक सूचित करेंगे ऐसी आशा है। महासमुंद C. P. ता. २२-७-४४.
-मुनि कांतिसागर
CIRCARROCARSA
P॥२४॥
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