Book Title: Gandhar Sarddhashatakam
Author(s): Jinduttsuri
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar
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धरिअकिवाणा केई,स-परे रक्खंति सुगुरुफरयजुआ। पासत्थचोरविसरो, वियारभीओ न ते मुसइ॥ मग्गम्मग्गा नजति नेय विरलो जण त्थि मग्गण्णाथोवा तदत्तमग्गे, लग्गति न वीससंति घणा॥ अन्ने अन्नत्थीहिं, सम्मं सिवपहमपिच्छिरोहिं पि। सत्था सिवत्थिणो चालिआ वि पडिआ भवारन्ने॥ परमत्थसत्थरहिएसु भवसत्थेसु मोहनिदाए । सुत्तेसु मुसिजतेसु पोढपासत्थ-चोरेहिं ॥९५॥ असमंजसमेयारिस,-मवलोइअ जेण जायकरुणेण। एसा जिणाणमाणा, सुमरिआ सायरं तइया॥
गाथाद्वादशकव्याख्या-"तमणुदिणं दिन्नगुणं वंदे जिणवल्लहं पहुं पयओ (१४७)"त्ति। श्रीजिनवल्लभसूरिं प्रभु-स्वामिनं प्रयत: आदरेण वन्दे-अभिवादयामि । कीदृशम् ? दत्ता-वितीर्णा भव्यप्राणिनां गुणाः-ज्ञानादयो येन तं दत्तगुणम् , यदि वागुणो-रज्जुस्ततश्च दत्ता अवतारितः संसारकूपान्तर्निमजजन्तुजातोद्धरणाय गुणः संवेगरससारद्वादशकुलकादिरूपा रज्जुर्येन, दत्ता वा सवानां जीववीर्योल्लासनेन कारातिनिर्दलनाय शौर्यादयो गुणा येन तं दत्तगुणं, तं वन्दे (१४७) (९६) येन, कि ?मित्याह-स्मृता-हृदि व्यवस्थापिता स्मरणपथमानीतेति यावत् , काऽसौ ? आज्ञा-वचनम् आदेशः, चकारात् कत्तुमवसिता च
१ " गुणो ज्या-सूत्र-तन्तुषु ॥ रजौ सत्त्वादौ संध्यादौ, शौर्यादौ भीम इन्द्रिये । रूपादावप्रधाने च, दोषान्यस्मिन् विशेषणे ॥ १॥" ( हेमाने. | कार्थसंग्रहः लो. १५३-१५३)
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