Book Title: Gandhar Sarddhashatakam
Author(s): Jinduttsuri
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

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Page 142
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गणधर साई श्रीजिनवल्लभ शतकम् । सुरीणां सप्रपंच ॥४७॥ स्तुतिगर्भचरित्रादि। AAMKARANSLCRECTRON इत्यादिकोऽपि यो विधिः । तथा रजस्वलाविषयेऽपि-( उपदेशरसायनरासे गा०६९-७१)" ......तिन्नि चयारि छुत्तिदिण रक्खइ, स जि सरावी लग्गइ लिक्खइ ॥६९॥ हुँति य छुत्ति जल(पब)दृइ सेच्छइ, सा घर धम्मह आवइ निच्छइ । छुत्तिभग्ग घर छड्इं देवय, सासणसुर मिल्लहिं विहिसेवय ॥७०॥ पडिकमणइ वंदणइ आउल्ली, चित्ति धरंति करेइ अभुल्ली । मणह मज्झि नवकारु वि ज्झायइ, तासु सुट्ट सम्मत्तु वि रायइ ॥ ७१॥" इत्यादिकश्चैतत्प्रकरणकाररचितचर्चरीरसायनादिप्रकरणोक्तो यो विधिः स सर्वोऽपि वर्त्तते । तथा श्रावक-श्राविकाविधिविषयेऽपि-(षट्स्थानके गा० १६-१८) "संतलयं परिहाणं, ज्झलंब-चोला(डा) इयं च मज्झिमयं । सुसिलिट्ठमुत्तरीयं, धम्म लच्छि जसं कुणइ ॥१६॥ परिहाणमणुब्भड, चलण-कोडिमज्जायमोसरंतं तु । परिहाणमक्कमंतो, य कंचुओ होइ सुसिलिट्ठो ॥१७॥ पच्छायंतं अंग, सुसिलिटुं उचरिजमणुरूवं । विकियं तविवरीयं, वजइ जिणभवणमाईसु ॥१८॥ इत्यादि वचनविषये च सर्वोऽपि विधिः श्रीजिनेश्वरसूरिकृतषस्थानकोक्तः शुद्धो मार्गः, विपरीतस्त्वशुद्धः । तथा चानेन प्रकरणकारेणोक्तं यथा-तत्राशुद्धः १“ जात-मृत-सूतकदिने रजस्वला-वमन-मूत्र-विष्ठासु । मद्ये चण्डालादौ, स्युः सप्त छुप्तयो लोके ॥१॥" २ उपदेशरसायनरासः । RECROSECRECORDANA ॥४७॥ For Private and Personal Use Only

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