Book Title: Gandhar Sarddhashatakam
Author(s): Jinduttsuri
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar
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गणधरसार्द्धशतकम् ।
श्रीहै जिनवल्लभ
सूरीणां || सप्रपंच
स्तुतिगर्भचरित्रादि।
॥५३॥
मूलुत्तरगुणपडिसेविणो जहिं हुंति दव्वजइणोऽमी । तमणाययणं पुण भावओ य नाणाइ हाणिकरं ॥५॥ लोउत्तरं तु विहिचेइयं दवओ तमाययणं । जं नाणाइगुणाणं, तत्थगयाणं हवइ वुड्डी
॥६॥ भावम्मि अ आययणं, पडिसोयपवित्तिकारिणो जइणो। जिणमयकारणरहिआ, कुणंति न कुसीलसंसरिंग ॥७॥ दसवेयालिअ-आवस्स-ओघनिज्जुत्ति-पंचकप्पेसु । अन्नेसु वि नाणापयरणेसु आययणमुत्तमिणं ॥८॥ खणमवि न खमं काउं, अणाययणसेवणं सुविहिआणं । इच्चाइसुत्तवि[व] चाणुसारओ वजणिअमिणं ॥९॥ दसणनाणचरिताण जत्थ लाभो गयाण संभवइ । आययणं तं दुविहंपि सेवाणिजं सैउण्णेहिं ॥१०॥ जत्थ जिणाणं पडिमा, तं सव्वं पूणिज्जमिह बिति । विहिअविहिकयं न मुणिति दसणं तेसि नत्थि धुवं ॥११॥ उस्सुत्तदेसणाकारगाण जे उण करंति बहुमाणं । आणावज्झाणं तेसि होइ सम्मत्तमिह कत्तो ॥१२॥
अणुसोयगामिणो बहुजणा उ पडिसोयगामिणो थोवा । ता नो बहुजणचिन्ने, मुक्खत्थी लग्गए मग्गे ॥ १३ ॥ समणगुणरयणनिहिणो, थोवा सद्धम्मरयणदायारो । सुविसुद्धधम्मरयणत्थिणोस्थि जेणिस्थ थोवयरा ॥१४॥ इय वयणाओ बहुजणमयम्मि मग्गे कहं विवेईहिं । लग्गिजइ लहुकम्मेहिं सव्वहा हासठाणम्मि तथा-(चैत्यवन्दनकुलके गा०६-१३) "आययणमनिस्सकडं विहिचेइयमिह तिहा सिवकरं तु । उस्सग्गओऽववाया, पासत्थोसनसनिकयं ॥६॥ १ 'स-पुण्यैः' इति छाया।
१॥५३॥
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