Book Title: Gandhar Sarddhashatakam
Author(s): Jinduttsuri
Publisher: Jinduttsuri Gyanbhandar

View full book text
Previous | Next

Page 154
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyarmandie गणधरसार्द्धशतकम् । श्रीहै जिनवल्लभ सूरीणां || सप्रपंच स्तुतिगर्भचरित्रादि। ॥५३॥ मूलुत्तरगुणपडिसेविणो जहिं हुंति दव्वजइणोऽमी । तमणाययणं पुण भावओ य नाणाइ हाणिकरं ॥५॥ लोउत्तरं तु विहिचेइयं दवओ तमाययणं । जं नाणाइगुणाणं, तत्थगयाणं हवइ वुड्डी ॥६॥ भावम्मि अ आययणं, पडिसोयपवित्तिकारिणो जइणो। जिणमयकारणरहिआ, कुणंति न कुसीलसंसरिंग ॥७॥ दसवेयालिअ-आवस्स-ओघनिज्जुत्ति-पंचकप्पेसु । अन्नेसु वि नाणापयरणेसु आययणमुत्तमिणं ॥८॥ खणमवि न खमं काउं, अणाययणसेवणं सुविहिआणं । इच्चाइसुत्तवि[व] चाणुसारओ वजणिअमिणं ॥९॥ दसणनाणचरिताण जत्थ लाभो गयाण संभवइ । आययणं तं दुविहंपि सेवाणिजं सैउण्णेहिं ॥१०॥ जत्थ जिणाणं पडिमा, तं सव्वं पूणिज्जमिह बिति । विहिअविहिकयं न मुणिति दसणं तेसि नत्थि धुवं ॥११॥ उस्सुत्तदेसणाकारगाण जे उण करंति बहुमाणं । आणावज्झाणं तेसि होइ सम्मत्तमिह कत्तो ॥१२॥ अणुसोयगामिणो बहुजणा उ पडिसोयगामिणो थोवा । ता नो बहुजणचिन्ने, मुक्खत्थी लग्गए मग्गे ॥ १३ ॥ समणगुणरयणनिहिणो, थोवा सद्धम्मरयणदायारो । सुविसुद्धधम्मरयणत्थिणोस्थि जेणिस्थ थोवयरा ॥१४॥ इय वयणाओ बहुजणमयम्मि मग्गे कहं विवेईहिं । लग्गिजइ लहुकम्मेहिं सव्वहा हासठाणम्मि तथा-(चैत्यवन्दनकुलके गा०६-१३) "आययणमनिस्सकडं विहिचेइयमिह तिहा सिवकरं तु । उस्सग्गओऽववाया, पासत्थोसनसनिकयं ॥६॥ १ 'स-पुण्यैः' इति छाया। १॥५३॥ For Private and Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186 187 188 189 190 191 192 193 194 195