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गणधरसार्द्धशतकम्।
॥१७॥
अणहिलपुर पाटन चैत्यवासीयों से अत्यन्त प्रभावित थी, यहां तक कि वे सुविहित जैन मुनियों को ठहरने स्थान तक न देते थे, दभूमिका। और न किसी से दिलवाते थे। देनेवालों को भी बहुत कष्ट देकर खाली करवाने के षडयंत्र रचे जाते थे। ऐसी विकट परिस्थिति उनके समस्त विचारों का आमूल परिवर्तन करना बड़ा कठिन था, वे तो अपने से विरुद्ध कोई बात सुनना ही न चाहते थे। उनके आगे न दलिल न वकील न कोई अपील ही थी; क्यों कि राजवर्ग का उन्हें पूर्ण आश्वासन प्राप्त था।
वर्द्धमानमूरिजी मालवे में विचरते थे। आप के जिनेश्वर और बुद्धिसागरसूरि अत्यन्त प्रतिभासंपन्न विद्वान शिष्य थे। आपने | गुजरात में विचरण करने की आज्ञा मांगी, इस पर आचार्य श्री वर्द्धमानसूरिजीने तत्कालिक गुजरात प्रान्तकी विषमता इनके आगे कही। इस पर दोनों विद्वान् आचार्य और वर्द्धमानसूरि आदि मुनिवर्य पृथ्वी पर विचरण करते करते भव्य जीवों को प्रतिबोध देते हुए गुजरात की राजधानी अणहिलपुर पाटन पधारे, पर वहां सुविहित मुनियों को ठहरने को स्थान कहां?, आचार्य श्री जिनेश्वरसूरि स्वयं स्थान निरीक्षणार्थ नगर में भ्रमण करने लगे। फिरते हुए राजपुरोहित के वहां पहुंचे। वहां आपने अपनी विद्वत्तापूर्ण प्रौढ प्रतिभा से उसे रंजित कर प्रभावित किया । सूरिजी-पूर्व ब्राह्मण होने से-वेदविद्याविशारद तो थे ही, पुरोहितादि विद्वानोंने अनेक प्रौढ़ विषयों के प्रश्न किये, पर सूरिजीने सभी के प्रश्नों के उत्तर बडी सावधानी व विद्वत्ता से दिये । पुरोहित कोमल शब्दों में बोलाहे पूज्य ! आप को वेद पढने का अधिकार है क्या ? शूद्रों को वेदाध्ययन नहीं करना चाहिये, (स्त्री शूद्रो नाऽधीयताम् ) सूरिजीने
CONOCOCCAUSAMACHAR
३३. प्रश्नोत्तरों के जानने के लिये गण. सा. वृवृत्ति का निरीक्षण आवश्यक है ।
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BAI
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