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श्रीदशाश्रुतस्कंधे-प्रस्तावना
सग्ग करे. बीजी बधी क्रिया पूर्ववत्. त्रीजी सात अहोरात्रिनी पडिमामां विशेषता ए छे के गोदोहिका आसने बेसे अथवा वीरासने बेसे अथवा अर्धशरीरे वांका रहे तेम ज कायोत्सर्गमां रही ध्यान करे. शेष पूर्ववत्. ए प्रमाणे एक अहोरात्रिनी चोथी पडिमामां विशेष ए छे के चोविहार छट्ट करे. वळी कंईक नमेली कायावडे एक पुदगल उपर द्रष्टि स्थिर करे. अर्थात् अनिमिष द्रष्टि राखे. यथा प्रणिहित गात्रवडे सर्व इन्द्रियोए करीने गुप्त बे पग संकोचीने, बे बाहु ऊंचा करीने कायोत्सर्गमां ध्यान करे. शेष पूर्ववत् . एक रात्रि पडिमाधारी मुनिने त्रण स्थानो होय छे. अहित, अशुभ अने अक्षेम. जो वीतरागनी आज्ञानुं पालन न करे तो अकल्याणने माटे थाय छे. तेथी उन्मादी थाय, मरण थाय अथवा रोगथी पीडाय. तेम ज केवली भगवंते प्ररुपेला धर्मथी भ्रष्ट थाय, अने एक रात्रिनी पडिमा सम्यक् प्रकारे पालन करे तो ए त्रणे स्थानो हित, शुभ अने क्षेमने माटे थाय छे.
ते मुनिराजने अवधिज्ञान, मनः पयर्वज्ञान के केवलज्ञान उत्पन्न थाय छे. खरेखर ए प्रमाणे एक रात्रि पडिमा यथासूत्र पूर्ववत् जाणी लेवी . आ प्रमाणे स्थविर भगवंतो भिक्षुनी बार पडिमाओ वर्णवी छे.
इति सप्तमा दसा
आठमी पर्युषणा दसामां मूल विषय तो बहु संक्षिप्त छे पण निर्युक्तिकार तथा चूर्णिकार महाराजानुं विवेचन विस्तारथी होवाथी तेनो सार लखवा मन प्रेरायुं छे. सातमी दसामां भिक्षुक पडिमामां शेषकाल प्रायः पूर्ण तो होवाथी तेना संबंधने लगतो चोमासानो काळ आववाथी श्री वीतराग भगवंतना फरमाव्या प्रमाणे स्थविर भगवंत श्री पर्युषण कल्पना पर्यायो-तेनी व्युत्पत्ति-समास-निक्षेपहेतु विगेरे समासथी जणावे छे, ते जोई लईए. पर्युषणा कल्पना चार द्वार छे. वासावास योग्य क्षेत्र वडे - उपधिवडे यावत् वासावास प्राप्त थाय ते नामनिष्पन्न. पर्युषणा कल्प ए बे पदवालुं नाम छे. तेनो समास षष्ठी तत्पुरुष छे. 'पज्जोसमणाए कप्पो इति पज्जोसमणाकप्पो' साधुनो दीक्षा पर्याय जेथी जणाय ते पर्युषणाकल्प. `दीक्षापर्यायो येन ज्ञायते श्रमणस्य' अथवा 'परि सर्वतः भावे उस निवासे' उणादि तथा स्त्री प्रत्यय आट् थकी पर्युषणासिद्धम् . `निर्युक्तिकार निर्णयति पज्जोसमणा— पज्जोसमणा एं अक्षरो गुणनिष्पन्न छे. इन्द्र पुरंदरनी जे तेथी गोण्णाई पद- विशेषण छे. दीक्षा पर्याय पर्युषणाथी गणातो होवाथी
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