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श्रीदशाश्रुतस्कंधे-प्रस्तावना
भोजननी अने एकदत्ती पाणीनी कल्पे.
भक्त-भिखारीओने माटे नहि बनावेल एवो शुद्ध आहार-लेप विनानो तेमज द्विपद-चतुष्पद-पक्षी-ढोरढांखर- अतिथि- भिखारी - आजीविको श्रमणादिनो आहारनो समय व्यतीत थये छते एकने माटे बनावेलुं होय तो कल्पे, नहि के बे त्रण चार के पांचने माटे बनाव्युं होय. गर्भवाली पासेथी, नाना बच्चावाली पासेथी, बालकने दुध पाती होय तेवी स्त्री पासेथी तथा जेणीना बे पग उंबरानी बहार होय के अंदर होय अने भिक्षा आपे तो ग्रहण न करे पण एक पग उंबरानी अंदर होय अने एक पग उंबरानी बहार अने भिक्षा आपे तो ग्रहण करे अने ए प्रमाणे न आपे तो ग्रहण न करे. वळी मासिक पडिमाने स्वीकारनार अणगारना त्रण भिक्षाना काळ छे. आदि, मध्य अने अंत. आ त्रणमांथी गमे ते एक वखते भिक्षा ग्रहण करे, पण बीजी वखत भिक्षाए निकले नहि. तेमनी गोचरीनो विधि छ प्रकारनो छे. (१) एक श्रेणिमां आंतरा रहित गोचरी जाय. (२) एक एकना आंतरे चरे (३) गोमूत्रिकाए चरे (४) पतंगविधिए चरे, (५) शंबुक्क वट्टाए चरे, (६) गंतु पच्चगताए चरे. जे वस्तीमां जाणी जाय के पडिमाधारी मुनि आव्या छे तो त्यां एक रात्रि रहे. जो न जाणे तो एक अथवा बे रात्रि रहे, पण तेथी अधिक न रहे, कारण के विधिनो छेद थाय, अथवा परिहार थाय.
मासिक पडिमाधारी मुनिने चार भाषा बोलवी कल्पे ते आ प्रमाणे...(१) याचना करवी (२) पृच्छा करवी (३) अनुज्ञा आपवी (४) पूछ्यानो प्रत्युत्तर आपवो. मासिक पडिमाधारी मुनिने त्रण वस्ती पडिलेहवी कल्पे (१) आरामगृह (२) विकृतगृह (३) वृक्षगृह. मासिक पडिमाधारी मुनिने त्रण संथारा पडिलेहवा कल्पे. (१) पृथ्वीशिला (२) काष्टशिला (३) यथासंस्थित. मासिक पडिमाधारी मुनिने त्रण संथारानी अनुज्ञा होवाथी याचना पण त्रणनी करे. तेम ज ते उपाश्रयमां कोई स्त्री अथवा पुरुष आवे तो मुनिने जवुं आववुं कल्पे नहि. तेम ज मुनिने त्यां वसतां वस्तीमां अग्नि लागे छते त्यांथी आवजाव न करे, पण कोई बाहु पकडीने बहार काढे तो जयणाए नीकळे. तेमज मुनिने विचरतां विचरतां ज्यां सूर्यास्त थाय त्यां ज मुनिने टुंटुं-कांटा-कांकरादि पगमां पेसे तो काढवा कल्पे नहि. जो काढे तो जयणापूर्वक काढे. मासिक पडिमाधारी मुनिने विचरतां विचरतां ज्यां सूर्यास्त थाय त्यां ज रहेवुं कल्पे. चाहे जल होय के स्थल होय, दुर्ग होय के नीचो प्रदेश होय, पर्वत होय के विषम भूमि होय, खाडो होय के गुफा होय तो पण रात्रि त्यां ज काढवी कल्पे. एक पगलुं पण आगळ चालवु
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