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चातुर्मासमा क्षेत्रादिनी स्थापना
पर्वतना मध्यम भागना गाममां मुनिराज रह्या होय, तेमने छए दिशानो अवग्रह राखवानो होय. 'इन्द्रपयमाइएसु'मां आदि पद जे ग्रहण कर्यु छे तेनुं कारण ए छे के बीजो पण एवो ज पर्वत होय, तेनी पण छ दिशा गणाय. एवा पर्वतने मकीने अन्य बीजा क्षेत्रमा चार दिशानो अवग्रह रखाय छे वा शब्दथी एटली ज न जाणवी. व्याघातवडे पांच होय अथवा एक-बे-त्रण पण होय छे, अर्थात् योग्य जणाय एटली दिशामां अवग्रह राखे...
बीजो प्रश्न० व्याघात क्यो ? उ० अटवी-उद्यान-पर्वत-पाणी वगेरेथी दिशाओ संधाएली होय, अने त्यां गाम न होय तो अवग्रह राख्यो शुं खपनो ? अथवा व्याघातोनी पहेलां चार गाम होय अने त्यां जई शकाय तेवू न होय तो पण अवग्रह शं कामनो ? तेथी यथायोग्य एक-बे-त्रण-चार-पांच अथवा छनो अवग्रह राखवो कल्पे. हवे अयोग्य क्षेत्रनी व्याख्या करतां जणावे छे के-जे गाम के नगरनी आजुबाजु अवग्रह राखवा लायक गाम-नगर-पराओ वगेरे न होय तेने अयोग्य क्षेत्र कहे छे.
__जे अवग्रहमां मुनि रह्या होय ते अवग्रहोनी वच्चे पाणी होय तो शुं करवू तेनो विधि जणावे छे.
ढींचणनो नीचेनो भाग जांघ कहेवाय छे. ते अर्ध जांघ डुबे एटलुं पाणी होय तो पाणी उतरी गोचरी विगेरे माटे विचरे तेमां ऋतुबद्ध कालमांत्रण संघट्टा जवा आववावडे छ जाणवा. चउमासामां सात फदक संघट्टा जवा आववावडे करी चउद. एथी अधिक करवा नहि. बीजो विधि बीजा सूत्रोथी जाणी लेवो, जेमके "एकं पादं जले किच्चा” इति क्षेत्रस्थापना.
हवे द्रव्यस्थापना जणावे छे.
द्रव्यस्थापनामां आहार-विकृति-संस्तारक-मात्रक-लोच-सचित्त-अचित्तने वोसरावq, ग्रहण करवू, धारी राखq . पूर्व आहार ओसवणा-योगविवृद्धि-सप्तउदकग्रहण, संचायिक अने असंचायिक द्रव्य विवृद्धि प्रशस्त. एनो भावार्थ नीचे मुजब जाणवो. द्रव्य स्थापना द्वारमा १ आहार द्वारमा चोमासु रहेल मुनिवर चार मास उपवासी रहे. जो शक्ति न होय तो मन, वचन अने कायाना योग शिथिल न थाय त्यां सुधीनो तप करे, तेने जोगहानी कहे छे. योगवृद्धि तप ए प्रमाणे जे नोकारशीनुं पच्चक्खाण करतो होय ते पोरसीनुं करे, यावत् एकासगुं.
ఉదంతంతమంతయంతం XXI అంతంతువంతం