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श्रीदशाश्रुतस्कंधे-प्रस्तावना
वालो, मनुष्य संबंधी पंचेन्द्रियना सुंदर भोगो भोगववावालो थाउं. जेमके मारुं मोढुं गोल लाडवा जेवुं हो. मारी आंखो मोटा कोडा जेवी लांबी पहोली अने रमणीय हो. मारुं नाक तीक्ष्ण अणीदार हो . मारा गाल उपसेला दडा जेवा हो. मारा होठ परवाला जेवा लाल अने खुबसुरत हो. मारा दांत दाडमनी कली जेवा देदीप्यमान शोभापात्र हो. मारुं कपाल तो आठमना चंद्रने पण आजी दे तेवुं हो. मारा माथाना वाल रेशम जेवा सुंदर हो. मारी बे भुजाओ तो लंबाइमां प्रमाणोपेत अने भोरींगने पण भय प्रमाडे तेवी होय. मारी केड तो केसरीसिंह जेवी शोभायमान हो. मारा हाथ पगनी आंगलीओ तो कमलना डांड जेवी सीधी अने सुंआली हो. टुंकाणमां मारुं शरीर एवं सुंदर हो के सर्व मनुष्यो मने चाहे. एवी रीते साधु पुरुष संबंधीना भोगोनी इच्छा करे अने साध्वी स्त्री संबंधीना भोगोनी इच्छा करे अने नियाणुं करे के मने आवा भोगो मलो. जो ते नियाणाने आलोच्या विना काल करे तो काल करीने देव संबंधी सुखने पामीने उपरोक्त सुखने भोगवी, महा आरंभ समारंभना योगे रौद्रध्यानना वशथी नरकगतिने पामे, अने धर्म के समकितने योग्य रहे नहि. उपरनी हकीकतमां बे नियाणानो समावेश करेलो होवाथी एम समजवुं के साधु अथवा साध्वी पुरुष थवानी इच्छा करे तो एक नियाणुं अने स्त्री थवानी इच्छा करे तो स्त्री संबंधी बीजुं नियाणुं जाणवुं . (अहिं विशेष ए छे के आवुं सुख मेलववामां पण चारित्र तो निरतिचार होवुं जोईए. बकुश-पासत्या कुशील के सम्यक्त्वविहूणा होय तो आवा सुखोथी पण वंचित रहे छे.)
एप्रमाणे बीजा सात नियाणा देव अने मानव संबंधी छे, पण फलवृत्तिमां उत्तरोत्तर फेर पडतो जाय छे छेवटना नियणावाळो एकावतारी पण बने छे. सूत्रकार जणावे छे के नियाणुं करवुं जोईए ज नहि. नियाणाथी सम्यक्त्व मलिन बने छे तेथी निर्नियाणावाळो ज ते भवमां मोक्षगामी थाय छे.
इति दसमी दसा समाप्ता.
आ दसे दसाओमां गणि संपदानो विचार करतां जणाय छे के सूत्रकारे गणाधिप उपर केटली जवाबदारीओ नांखी छे. जो मुनिराजो आठ संपदाओ तरफ नजर दइने आठे संपदाओने द्रव्यक्षेत्रकाल प्रमाणे ग्रहण करी पछी गणिपद ले तो आजे पदस्थानोमा रहेल अविद्यानो वंटोळ शान्त थई ज्ञानरुपी सूर्यबडे सत्य शोधीने स्वपरना जीवनविकासमां घणा सहायक बनी शकाय .
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