________________ प्रथम दशा . हिन्दीभाषाटीकासहितम् / टीका-इस सूत्र में यह बात स्पष्ट की गई है कि आवश्यकता से अधिक शय्या व पट्टकादि न रखने चाहियें; क्योंकि प्रमाण-युक्त वस्तुओं की ही रक्षा और शुद्धि विधि-पूर्वक हो सकती है, उस से अधिक की नहीं / जिन वस्तुओं की यथोचित रीति से प्रमार्जना व रक्षा नहीं हो सकती, उन में अनेक प्रकार के जीव उत्पन्न हो जाते हैं / जब आसनादि उपकरणों में कीटादि जन्तु उत्पन्न हो जायेंगे, तो 'आत्म-विराधना' और संयम विराधना के कारण सहज में ही उत्पन्न हो जाएंगे और उनका परिणाम उभय लोक में अहित-कर होगा / इतना ही नहीं किन्तु असमाधि द्वारा संसार-चक्र में परिभ्रमण करना पड़ेगा / - इस सूत्र से प्रत्येक व्यक्ति को शिक्षा लेनी चाहिए कि प्रमाण पूर्वक वस्तुसेवन असमाधि का कारण नहीं होता / जैसे प्रमाणपूर्वक भोजन किया रोग का कारण नहीं होता / इस प्रकार आदान-मात्र–भाण्डोपकरण-समिति' का वर्णन कर सूत्रकार अब 'भाषा-समिति' का विषय वर्णन करते हैं रातिणिअ-परिभासी / / 5 / / रात्निक-परिभाषी / / 5 / / .. पदार्थान्वयः-रातिणिअ-रत्नाकर के प्रति, परिभासी-परिभाषण करना / मूलार्थ-गुरु आदि वृद्धों के सामने भाषण करना / टीका-इस सूत्र में यह दिखाया गया है कि वृद्धों के साथ किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए / जो व्यक्ति वृद्धों से सभ्यता का व्यवहार करता है, उसको समाधि-स्थान की प्राप्ति होती रहती है / इसके विपरीत रात्निक-आचार्य, उपाध्याय, अन्य स्थविर तथा श्रुत-पर्याय और दीक्षादि में वृद्ध साधुओं-का तिरस्कार करने वाला, उनसे शिक्षा प्राप्त कर उनका ही पराभव करने वाला, उनके लिए अपमान-सूचक शब्द प्रयोग करने वाला, उनकी जाति आदि को लेकर उनका उपहास (हँसी) करने वाला, उनसे प्राप्त पवित्र शिक्षा में तर्क वितर्क करने वाला तथा निरन्तर उनकी निन्दा में कटि-बद्ध रहने वाला सदैव असमाधि-भाजन होता है / ___ इसके अतिरिक्त इससे 'आत्म-विराधना' व 'संयम-विराधना' के कारण उपस्थित हो जाते हैं जिसका परिणाम उभय-लोक में अहित-कर होता हैं / अत एव समाधि-इच्छुक आत्माओं को 'वाक्य-समिति' का अवश्य ध्यान रखना चाहिए /