________________ - द्वितीया दशा.. हिन्दीभाषाटीकासहितम् / हैं, उनमें एक यदि अन्य नौ की आज्ञा बिना उस पदार्थ का उपयोग करे तो उसको शबल दौष की प्राप्ति होगी / ___ किन्तु धन, धान्य, पशु और स्त्री आदि की चोरी से, ताला तोड़ डाका मारने से, लूटमार करने से तथा मकान में सन्धि लगाने से तो महाव्रत-भङ्ग-दोष होता है / क्योंकि इन कर्मों से तृतीय महाव्रत का भङ्ग होता है / अतः इस विषय में अतिक्रम, व्यतिक्रम और अतिचार पर्यन्त ही शबल दोष जानना चाहिए / सिद्ध यह हुआ कि अदत्त-दान कभी ग्रहण न करे / व्यवहार नय के अनुसार केवल भावों के संक्रमण (परिवर्तन) से ही शबल दोष होता अब सूत्रकार पृथ्वी-काय की रक्षा के विषय में कहते हैं: आउट्टियाए अणंतर-हिआए पुढवीए ठाणं वा निसीहियं वा चेतमाणे सबले / / 15 / / आक्ट्या अनन्तर्हितायां पृथिव्यां स्थानं वा नैषेधिकं वा चेतयन् शबलः / / 15 / / पदार्थान्वयः-आउट्टियाए-जानकर अणंतरहिआए-सचित्त पुढवीए-पृथिवी पर ठाणं-कायोत्सर्ग करना वा-अथवा निसीहियं-बैठना वा-अथवा अन्य क्रियाओं को चेतमाणे-करते हुए सबले-शबल दोष लगता है / - मूलार्थ-जानकर, सचित्त पृथिवी पर निरन्तर कायोत्सर्ग करते हुए, बैठते हुए तथा इनके समान अन्य क्रियाएं करते हुए शबल दोष होता है। टीका-इस सूत्र में बताया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति को पृथ्वी-काय जीवों की रक्षा यत्न से करनी चाहिए; क्योंकि ऐसा करने से ही संयम-आराधना नियम-पूर्वक हो सकती है / ___ सचित्त पृथिवी में, जानकर निरन्तर कायोत्सर्ग करने से, स्वाध्याय करने से, शयन करने से, बैठने से तथा इनके समान अन्य क्रियाएँ करने से शबल दोष लगता है; क्योंकि जो जानकर इस प्रकार करेगा उसके चित्त में पृथ्वी-काय जीवों की रक्षा का भाव नहीं be