________________ है सप्तमी दशा .. हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 255 भिक्षु-प्रतिमा प्रतिपन्नः(स्य) कल्पते त्रीनुपाश्रयानुपातिनेतुम् (उपग्रहीतुम्), ते च त एव / __पदार्थन्वयः-मासियं-मासिकी भिक्खु-पडिमं-भिक्षु-प्रतिमा पडिवन्नस्स-प्रतिपन्न अनगार को तओ-तीन तरह के उवस्सया-उपाश्रयों के लिए अणुण्णवेत्तए-आज्ञा लेना कप्पति-योग्य है अहे आराम-गिह-अध आराम-गृह की अहे वियड-गिह-अधो विवृत-गृह की अहे रुक्ख-मूल-गिह-अधो वृक्ष-मूल-गृह की / फिर मासियं-मासिकी भिक्खु-पडिमं-भिक्षु-प्रतिभा पडिवन्नस्स-प्रतिपन्न अनगार को तओ-तीन उवस्सया-उपाश्रय उवाइणित्तए-स्वीकार करना कप्पति-योग्य है, तं चेव-और वे पूर्वोक्त ही हैं। णं-वाक्यालङ्कार के लिए है / मूलार्थ-मासिकी भिक्षु-प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार को तीन प्रकार के उपाश्रयों की आज्ञा लेनी चाहिए। अध आराम-गृह, अधो विकट-गृह और अधो वृक्ष-मूल-गृह की / मासिकी भिक्षु-प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार को उक्त तीन प्रकार के उपाश्रय ही स्वीकार करने चाहिए / टीका-इस सूत्र में प्रतिपादन किया गया है कि उपाश्रयों की प्रतिलेखना के अनन्तर प्रतिमा-प्रतिपन्न अनगार को उचित है कि उपाश्रय के स्वामी की आज्ञा लेकर ही उसमें स्थिति करे, क्योंकि बिना आज्ञा प्राप्त किए रहने की उसको आज्ञा नहीं है / लिखा भी है “उपग्रहीतुं स्थायित्वेनाङ्गीकर्तुं युज्यते” अतः आज्ञा ले कर ही उसको वहां रहना चाहिए / अब सूत्रकार संस्तारक के विषय में कहते हैं : मासियं णं भिक्खु-पडिम पडिवन्नस्स कप्पति तओ संथारगा पडिले हित्तए / तं जहा-पुढवी-सिलं वा कट्ट-सिलं वा अहा-संथडमेव / मासियं णं भिक्खु-पडिमं पडिवन्नस्स कप्पति तओ संथारगा अणुण्णवेत्तए, तं चेव / मासियं णं भिक्खु-पडिमं पडिवन्नस्स कप्पति तओ संथारगा उवाइणित्तए, तं चेव /