________________ सप्तमी दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 276 ___टीका-इस सूत्र में दूसरी (नौवीं) और तीसरी (दशवीं) प्रतिमा का वर्णन किया गया है / द्वितीया प्रतिमा भी सात रात्रि और सात दिन तक ही षष्ठ तप के साथ पालन की जाती है अर्थात् इस प्रतिमा में दो-२ उपवासों पर धारणा की जाती है / पहली प्रतिमा के समान इस में भी नगरादि के बाहर जाकर दण्डवत् दीर्घासन से अथवा लकड़ी के समान अर्थात् शिर और पैरों को जमीन पर टिका कर शेष शरीर के भाग भूमि से ऊपर रखते हुए और उत्कुटुकासन अर्थात् भूमि पर सम पाद पूर्वक बैठते हुए कायोत्सर्गादि से समय व्यतीत किया जाता है / इन आसनों के द्वारा समाधि लगाकर आत्मानुभव करना ही दूसरी प्रतिमा का मुख्य उद्देश्य है / इस प्रकार से इस प्रतिमा का आराधन किया जाता है / . तीसरी सात दिन की और सात रात की प्रतिमा में भी पहली प्रतिमा के सब नियमों का विधिपूर्वक पालन किया जाता है / इसके अतिरिक्त यह प्रतिमा अष्टम तेला तप से आराधन की जाती है किन्तु तप कर्म पानी के बिना धारण किया जाता है / इस प्रतिमा में गोदोहनासन, वीरासम और आम्र-कुब्जासन से कायोत्सर्गादि करने की आज्ञा ! यदि किसी को जिज्ञासा हो कि गोदोहनिकासन, वीरासन और आम्र-कुब्जांसन का क्या अर्थ है तो उसके लिए स्पष्ट किया जाता है :-“गोदोहनिकासन-गोदोहनक्रियैव गोदोहनिका, गोदोहनप्रवृत्तस्यैवाग्रपादतलाभ्यामवस्थानं क्रियते इत्यर्थः, तयावस्थायिन इति भावः / अर्थात् जिस प्रकार पैरों के तलों को उठा कर गाय दुहने के लिए बैठते हैं उसी प्रकार बैठ कर ध्यान करने को 'गोदोहनिकासन' कहते हैं / वीरासन-वीराणां दृढ-संहननानाम्, आसनमवस्थानं यथा भवति तथा / सिंहासनाधिरूढस्य सिंहासनापनयनेऽप्यविचलरूपेण भूमाववस्थानमिति भावः / अर्थात् यदि कोई व्यक्ति कुरसी पर बैठा हो और दूसरा आकर उसके नीचे से कुरसी हटा दे और बैठने वाला उसी प्रकार अविचल रूप से भूमि पर भी बैठा रहे तो उसको 'वीरासन' कहेंगे आम्र-कुब्जासन-आम्र-फलवद् वक्राकारा स्थितिः आम्र-कुब्जा-सनमुच्यते / अर्थात् जिस प्रकार आम्र फल वक्राकार होता है उस प्रकार बैठ कर ध्यान करने को आम्र-कुब्जासन कहते हैं / इन तीन आसनों से ध्यानस्थ हो जाने को तृतीया भिक्षु-प्रतिमा कहते हैं / सूत्रों के अनुसार इसका आराधन करके आत्म-विकास करना चाहिए /