________________ .00 416 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् दशमी दशा अथवा बुढ़ापे से ही पहले छोड़ दो, क्योंकि यह अध्रुव है अतः इसे छोड़ना ही अच्छा है / कहने का तात्पर्य इतना ही है कि उन्होंने विचारा कि मानुषिक काम-भोग और मनुष्य-शरीर अवश्य ही घृणास्पद है, अतः त्याज्य है / अब सूत्रकार कहते हैं कि इसके बाद उन्होंने क्या विचारा : संति उड्ढं देवा देवलोगंसि तेणं तत्थ अण्णेसिं देवाणं देवीओ अभिमुंजिय(इ)श्त्ता परियारेंति अप्पणो चेव अप्पाणं विउव्विय (इ)२त्ता परियारेति अप्पणिज्जियाओ देवीओ अभिमुंजिय(इ)श्त्ता परियारेति / संति इमस्स तव-नियमस्स जाव तं चेव सव्वं भाणियव्वं जाव वयमवि आगमेस्साणं इमाई एयारूवाई दिव्वाइं भोगभोगाई भुंजमाणो विहरामो | से तं साहू | ___ सन्त्यूचं देवा देव-लोके ते नु तत्रान्येषां देवानां देवी-रभियुञ्जन्ति, अभियुज्य परिचारयन्ति / आत्मना चैवात्मानं विकुर्वन्ति, विकृत्य परिचारयन्ति / आत्मीया देवीरभियञ्जन्ति, अभियुज्य परिचारयन्ति / यद्यस्य तपोनियमस्य यावत्सर्वं तच्चैव भणितव्यं यावत् वयमप्यागमिष्यतीमानेतद्रूपान् भोग-भोगान् भुञ्जन्त्यो विहरामः / तदेतत्साधु / ___पदार्थान्वयः-उड्ढे-ऊपर देवलोगंसि-देव-लोक में देवा-देव संति-हैं ते णं-वे देव तत्थ-वहां अण्णेसिं-दूसरे देवाणं-देवों की देवीओ-देवियों को अभिमुंजिय-वश में करते हैं और अभिजुंजिय(इ)त्ता-वश में कर परियारेति-उपभोग में प्रवृत्त कराते हैं / दूसरे देव अप्पणो चेव-अपनी ही अप्पाणं-आत्मा को विउविय-वैक्रिय करते हैं और विउव्विय(इ)त्ता-वैक्रिय कर परियारेति-उपभोग में प्रवृत्त कराते हैं | दूसरे देव अप्पणिज्जियाओ-अपनी ही देवीओ-देवियों को अभिमुंजिय-वश में करते हैं और अभिमुंजिय(इ)त्ता-वश में कर परियारेंति-उपभोग में प्रवृत्त कराते हैं / यदि इमस्स-इस तवनियमस्स-तप और नियम के संति-फल हैं जाव-यावत् सव्वं-सब तं चेव-पूर्वोक्त ही भाणियवं-कहना चाहिये जाव-यावत् वयमवि-हम भी आगमेस्साणं भविष्य में इमाइं-इन