Book Title: Dasha Shrutskandh Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Aatmaram Jain Dharmarth Samiti

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Page 560
________________ 24 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् परम-दुभिगंधा तीक्ष्ण दुर्गन्ध से युक्त | परिभासी-रातिणिय परिभासी देखो . . परलोए परलोक परिसुज्झइ शुद्ध हो जाता है परलोग-वाइपरलोक मानने वाला परूवेति-निरूपण करते हैं परिकिलेसाओ सब प्रकार के क्लेश से पवाओ=उदक-शाला, प्याऊ परिक्खित्तं घिरा हुआ पवाल-भोयणं प्रवाल अर्थात् नये-नये पत्ते परिग्गहाओ=परिग्रह अर्थात् ममत्व या कोंपलों का भोजन भाव से पविकत्थइ=अपनी प्रशंसा करता है परिघेतव्वा पकड़ना चाहिए पवित्थ-विधीतो घर सम्बन्धी उपकरणों को परिचिय-सुय=सब श्रुत अर्थात् शास्त्रों को सीमा में रखना जानने वाला पविणेइ निकालता है, दूर करता है परिठवित्तए उत्सर्ग करने के लिए पव्वइए प्रव्रजित हुए अर्थात् साधु-वृत्ति परिठावणिया-उच्चार-पासवण देखो ग्रहण की है परिणाए परिज्ञात, परित्यक्त, छोड़ा हुआ पव्वएज्जा प्रव्रजित हो . परिणाह-आरोह–परिणाह देखो पव्वयग्गे पर्वत की चोटी पर परित्तं गिनती में आने वाले पसत्थारं कलाचार्य या धर्माचार्य | सा. (उपकरणों में कमी) ___धर्मशास्त्र का विद्यार्थी परितप्पंति=पीड़ा पहुचाते हैं / पस्सामि देखता हूँ परिनिव्वायंति सांसारिक दुःखों के त्याग से | पसेवित्ता सेवन कर . . __ शान्त-चित्त होते हैं पहणए-प्रहार करता है परिनिव्वावियं जितना उपयुक्त है पहाणाय सव्व-दुक्ख-पहाणाय देखो उतना ही पाउग्गत्ताए प्रयोग के लिए .. परिनिव्वुए सब दुःखों का अन्त कर मोक्ष पाउणइ पालन करता है ___ को प्राप्त हुए पाउणित्ता पालन कर परियाए=संयम-पर्याय में पाउणेज्जा-प्राप्ति करे परियारेंति=मैथुन में प्रवृत्त कराते हैं पाउड्भूया प्रकट हुए थे परियावेयव्वा, व्वो=पीड़ित करो पाए पैरों की परिसं-परिषद् को, श्रोता-गण को पाडिहारिय=लौटाए जाने वाले परिसओ परिषद् को पाणं पानी परिसा परिषद् पाणगस्स=पानी की

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