Book Title: Dasha Shrutskandh Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Aatmaram Jain Dharmarth Samiti

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Page 570
________________ - 34 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् संविभइत्ता विभाग करने वाला, बांटने वाला संवुडे संवृतात्मा संवेढइ-संवेष्टन करता है, ढांकता है सकोरंट-मल्ल-दामेणं-कोरंट वृक्ष की माला से युक्त .. सक्कारेति=सत्कार करता है . सखं साक्षात, प्रत्यक्ष सगड-शकट, बैलगाड़ी। सचित्ताहारे सचित्त आहार सच्चा-मोसाइंसच और झूठ सज्जासणिए-अतिरित्त-सज्जासणिए देखो . सज्झाय-वायं स्वाध्याय-वाद सज्झायकारए-अकाल-सज्झायकारए देखो सढे धूर्त सण्णि-णाणं-जाति-स्मरण ज्ञान सति विद्यमान होने पर सत्त=सात सत्तमा सातवीं सत्थाई शस्त्र सदति अच्छा लगता है सदेव-मणुयासुराए-देव, मनुष्य और असुरों से युक्त (परिषद् में) सद्द-करे शब्द करने वाला / सा. बड़े जोरों ___ से आत्म-प्रशंसा करने वाला सदहेज्जा श्रद्धा करे सद्दहणत्ताए श्रद्धा करने के लिए सद्दावित्ता=बुलाकर सद्दावेइ=बुलाता है सद्धिं साथ सन्नि–णाणेण संज्ञि ज्ञान से, जाति स्मरण ज्ञान से सन्निवेसंतराइं-एक पड़ाव से दूसरा पड़ाव सपक्खं सम श्रेणी में पास-पास सपाणे जीव-युक्त सप्पी-सर्पिणी सफले-फल-युक्त सबला-शबल-दोष सबीए-बीज-युक्त समाओ=सभा-मण्डल समढे-ठीक है समणाणं श्रमणों का समणे श्रमण / समणोवासए श्रमणोपासक , समणोवासग-परियागं श्रमणोपासक के पर्याय को समणोवासगस्स श्रमणोपासक का समलंकरेइ अलंकृत करता है समाणइत्ता=अनुष्ठान करने वाला समाणंसि समान आसन, बराबरी के ____ आसन में समादाय-ग्रहण कर समाभट्ठस्स बार-बार बुलाने पर समायारमाणे विशेषता से आचरण करते हुए समारभ-प्रारम्भ कर, जलाकर समाहि-पत्ते समाधि को प्राप्त हुआ समाहि-पत्ताणं समाधि को प्राप्त हुए . ..

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