Book Title: Dasha Shrutskandh Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Aatmaram Jain Dharmarth Samiti

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Page 566
________________ 1 30 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् रायणियस्स-रत्नाकर के रायगिह-नयरं=राजगृह नगर रायगिहस्स-राजगृह नगर के रायगिहे राजगृह राय-पिंडं राजा का आहार रायधाणिस्स राजधानी के राया राजा रीएज्जा चले रुइ-सव्वधम्म-रुइ देखो .. रुइ-मादाए रुचि की मात्रा से रुव-कसाय-दंतकठ्ठ-देखो रुक्ख-मूलगिहंसि वृक्ष के मूल में अथवा ___ वृक्षों की जड़ से बने हुए घर में .. रुहिर रुधिर रोगायंक=रोगातङ्क, रोग की पीड़ा लगड-साइस्स लकड़ी के समान आसन __ ग्रहण करने वाले का .. लम्भेज्जा प्राप्त करे . . लयाए-लता से लित्ताणुलेवण-तला=(मेद-वसा आदि से) नीचे का हिस्सा लिपा हुआ होता है लुक्खं रूक्ष, रूखा (पापड़ आदि पदार्थ) लुत्त-सिरए लुञ्चित केश वाला लुभइ लोभ करता है लेलुए प्रस्तर-खण्ड पर, ढेले पर लेलुएण कंकड़ों से, ढेलों से लोगं, यं लोक को लोयंसि लोक में लोहिय-पाणी रुधिर से जिसके हाथ लिप्त हैं वंचण छली वंता वमन कर, दूसरों के सामने प्रकट ___या दूर फेंक कर वंतासवा=वमन के द्वार वंदति स्तुति करता है वंदंति-वन्दना करते हैं, स्तुति करते हैं वंदित्ता स्तुति कर वग्गुहि =वचनों से वग्धारिय-हत्थेण=लिप्त हुए हाथ से वग्घारिय-पाणिस्स दोनों भुजाओं को लम्बी कर वज्ज-बहुले पापी, पाप-पूर्ण कर्मों वाला वट्टग बटेर वट्टमग्गं=नियत मार्ग में वट्टा=अंतोवट्टा देखो वण-कम्मंताणिजंगलों के ठेके वणीमग-भिखारी वण्णओ=वर्णन करने योग्य हैं वण्ण-वाई-वर्णवादी..आचार्य आदि के गुण-गान करने वाला, | वण्ण-सजलणयावर्णसंज्वलनता, ___ गुणानुवादकता, कीर्ति या यश ___ फैलाना, विनय-प्रतिपत्ति का एक भेद वत्तव्=कहना चाहिए वत्ता कहने वाला वत्तेति देता है वत्थु पदार्थ, व्यक्ति विशेष या पूर्वोत्तर प्रकरण वदइ-कहते हैं | वदमाणे बोलते हुए -

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