Book Title: Dasha Shrutskandh Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Aatmaram Jain Dharmarth Samiti

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Page 545
________________ शब्दार्थ-कोष उरालाइं-उदार, श्रेष्ठ | उवागच्छई आता है उलंवियं वृक्षादि से लटका हुआ उवागम्म प्राप्त कर उवगरण-उप्पायणया उपकरणोत्पादनता, उवासग-पडिमाओ=उपासक अर्थात् साधुओं - विनय-प्रतिपत्ति का एक भेद की सेवा करने वाले श्रावक की ग्यारह उवगरणाणं उपकरणों का प्रतिमा या प्रतिज्ञा उवगसं(च्छं) तंपि=सन्मुख आते हुए को भी | उव्वहइआजीविका करता है उवज्झायाणं आयरिय-उवज्झायाणं देखो उसढं सुन्दर और रसयुक्त उवठाण-साला-उपस्थान, शाला, राजसभा उसन्नं प्रायः उवट्ठवेह उपस्थित. करो उसिणोदय-वियडेण=भयङ्कर अथवा उवट्ठिए उपस्थित होकर विशाल, गरम जल उवट्ठिता उपस्थित हुई एकल्ल-विहार-समायारी विहार उवट्ठियं जो (दीक्षा के लिये) करने की मर्यादा, आचार विनय ___ उपस्थित है . का एक भेद उवणिमंतेइ-निमंत्रित करता है . एकादसमा ग्यारहवीं उवदंसेइ-दिखाता है एक्कारस=एकादश, ग्यारह उवद्दवेयव्वा, व्वो=कष्ट पहुंचाओ, एगओ=एक स्थान पर दुःख दो एगंतं एकान्त में उवनेमो लावें एग-जाया केवल एक पत्री उवलद्ध-पुण्ण-पावे पुण्य और पाप एग-पोग्गल-ठितीए एक पुद्गल पर स्थित ___ को प्राप्त करता हुआ (दृष्टि से) उवलम्भंति प्राप्त करते हैं / एग(क)बीसं इक्कीस उववज्जति उत्पन्न होते हैं। एग-राइयं एक रात्रि की उववत्तारो उत्पन्न होने वाली (उपासक प्रतिमा) उवसग्गा उपसर्ग, उपद्रव, कष्ट एगा एक अकेली उवस्सया उपाश्रय, साधु के रहने का एते ये . स्थान . एतेसिं=इनकी उवहडं दूसरे के लिए तय्यार किया हुआ / एयं इस . सा. परोसा हुआ, परोसे हुए भोजन को / एयारिसं इस प्रकार के ही ग्रहण करने का नियम विशेष एयारूवेण इस प्रकार के उवहसे हंसता है एलुयस्स देहली के

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