Book Title: Dasha Shrutskandh Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Aatmaram Jain Dharmarth Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 546
________________ 10 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् एवं इसी प्रकार | कण्हुइ-रहस्सिया किसी भी कार्य में एसणाऽसमिते-एषणा समिति के विरुद्ध रहस्य (भेद) रखने वाले . चलने वाला कप्पति उचित है एसणा-समियाणं एषणा समिति वाले अर्थात् कप्परुक्खे(च)इव कल्प वृक्ष के समान निर्दोष आहार ग्रहण करने वाले कम्मं कर्म ओयं निर्मल, राग-द्वेष-रहित कम्मंता=अशुभ कर्म के फल देने वाले / ओलंभिया अवरुद्ध कर, रोक कर .. सा. कर्म के निमित्त-कारण ओहं संसार-रूपी समुद्र कम्म=आक्रमण कर ओहारइत्ता शंका-रहित भाषा बोलने वाला, कम्म-बीएसु-कर्म-रूपी बीज असमाधि के ग्यारहवें स्थान का सेवन / कम्माइं-कर्म करने वाला कय–कोउयं-मंगल-पायच्छित्ते जिस ने ओहि अवधि (रक्षा और सौभाग्य के लिए) मस्तक पर : ओहि-णाणे अवधि-ज्ञान, ज्ञान का तिलक. (विघ्न विनाश के लिए) मङगल पांचवां भेद तथा (दुःस्वप्न और अपशकुन दूर करने ओहि-दसणे अवधि-दर्शन के लिए) प्रायश्चित्त-पैर से भूमि-स्पर्श औरालियं औदारिक, स्थूल (शरीर) आदि क्रियाएं की कंख काङ्क्षा, अभिलाषा कयरे कौन से कंखियस्स-काङ्क्षा (अभिलाषा, लोभ) कय-बलिकम्मे जिसने बलि-कर्म अर्थात् वाले की बलवर्द्धक व्यायाम (कसरत) किया है कंठे गले में कय-विक्कय-मासद्ध-मासरूपग-संववकक्खङ-फासा=कर्कश अर्थात् कठोर स्पर्श हाराओ=खरीदना, बेचना, मासार्द्ध और वाले मासरूपक व्यवहार से. कज्जंति=किये जाते हैं कय-सोभे शोभायमान कटि-सुत्तयं कटि-सूत्र, मेखला, कमर का कयाई कदाचित् किसी समय गहना करण-करावणाओ=(हिंसा) करने और कटु-करके ___कराने से कट्ठ-कम्मंताणि लकड़ी के कारखाने | कर-यलं हाथ जोड़कर कण्ह-पक्खिए=कृष्णपाक्षिक अर्थात् वह व्यक्ति | करावणाओ=करण देखो जो अर्ध पुद्गल परावर्तन काल से भी अधिक | करित्ता=(उक्त कार्य) करा कर . . संसार-चक्र में भ्रमण करता रहे | करेइति करता है

Loading...

Page Navigation
1 ... 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576