Book Title: Dasha Shrutskandh Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Aatmaram Jain Dharmarth Samiti

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Page 555
________________ - शब्दार्थ-कोष 16 જ दिव्वा देव-सम्बन्धी दुष्परिचया दुष्ट संगति करने वाला दीव-ताण द्वीप के समान रक्षा करने वाले दुम्मणा-दुर्मन, खिन्न-चिन्त दीव-समुद्देसु-द्वीप और समुद्रों में दुयाण्हं दो दिन दुक्कडाणं दुष्कर्म, बुरे कर्म दुरणुणेया बुरी प्रकृति वाला अथवा दुष्टों दुक्खं कष्टकर ___ का अनुगामी दुक्खण=दुःख देना दुरहियास दुःख से सहन किया जाने दुक्ख-दोय दो प्रकार के अर्थात् शारीरिक वाला और मानसिक दुःखों से दुल्लभ–बोहियए दुर्लभ बोधिक अर्थात् दुक्खहियासं-दुःख-पूर्वक सहन की जाने कठिनता से समझने वाला वाली दुवे दो दुक्खेति दुःख देता है दुव्वया बुरे व्रत करने वाला, बुरे आचरण दुग्गं दुर्गम . वाला दुचरिया दुष्ट आरचण वाला, जिसकी दुस्संचाराइं=कठिनता से जाने योग्य दिनचर्या दुष्ट है दुस्सीला दुराचारी, बुरे स्वभाव वाला दुच्चिण्णा दुष्ट, अशुभ दुति-पलासए दुतिपलाशक नाम वाला दुट्ठस्स दुष्ट, अशुभ (उद्यान) दुढे दुष्ट के देव-कुलाणि देवकुल दुढे दुष्ट अथवा द्वेषी देव-जुइ-देवधुति दुण्हं दो के लिए देवत्ताए=देव रूप दुति(ए) ज्जमाणे जाते हुए देव-दसणे देव-दर्शन दुधरं भंगादि दुर्धर, अत्यन्त कठिनता से देव-लोएसुदेव-लोकों में धारण किया जाने वाला .. देव-लोगाओ=देव-लोक से दुप्पडियानंदा दुष्ट कार्य से प्रसन्न होने / देवाणुप्पिया देवों के प्रिय वाला / सा. कठिनता से प्रसन्न होने देवाणुभावं देवानुभाव को, देवता के वाला ___ सामर्थ्य को दुप्प(प) मज्जियचारि=दुष्प्रमार्जितचारी अर्थात् | देविद्धिं देवर्द्धि, देवताओं की ऋद्धि अविधि से प्रमार्जन कर चलने वाला / | देवे देव असमाधि के तीसरे भेद का सेवन करने | देसावगासियं=देशावकाशिक व्रत, दिशा तथा वाला द्रव्य की मर्यादा-रूप श्रावक का एक 1. दुप्पय दो पैर वाला जीव, मनुष्य व्रत

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