Book Title: Dasha Shrutskandh Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Aatmaram Jain Dharmarth Samiti

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Page 525
________________ दशमी दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 457 तस्मिन् काले तस्मिन् समये श्रमणो भगवान् महावीरो राजगृहे नगरे गुणशिले चैत्ये बहूनां श्रमणानां बहीनां श्रमणीनां बहूनां श्रावकानां बहीनां श्राविकानां बहूनां देवानां बहीनां देवीनां सदेवमनुजासुरायां परिषदि मध्यगत एवमाख्याति एवं भाषते एवं प्ररूपयत्यायतिस्थानं नाम, आर्याः ! अध्ययन सार्थसहेतुकं सकारणं सूत्रञ्चार्थञ्च तदुभयञ्च भूयोभूय उपदर्शयतीति ब्रवीमि / आयतिस्थाना नाम दशमी दशा समाप्ता / पदार्थान्वयः-तेणं कालेणं-उस काल और तेणं समएणं-उस समय समणे-श्रमण भगवं-भगवान् महावीरे-महावीर रायगिहे-राजगृह नगरे-नगर में गुणसिलए-गुणशिल नामक चेइए-चैत्य में बहूणं-बहुत समणाणं-श्रमणों की बहूणं-बहुत समणीणं-श्रमणियों की बहूणं-बहुत सावयाणं-श्रावकों की बहूणं-बहुत सावियाणं-श्राविकाओं की बहूणं-बहुत देवाणं-देवों की बहूणं-बहुत देवीणं-देवियों की और फिर सदेवमणुयासुराए-देव, मनुष्य और असुरों की परिसाए-परिषद् में मज्झगए-बीच में चेव-समुच्चय अर्थ में है | एवं-इस प्रकार आइक्खति-प्रतिपादन करते हैं एवं भासह-इस प्रकार वागयोग से भाषण करते हैं एवं परूवेति-इस प्रकार निरूपण करते हैं अज्जो-हे आर्यो ! आयतिठाणंआयतिस्थान-उत्तर काल में फल देने वाला णाम-नाम वाला अज्झयणं-अध्ययन सअटुं-अर्थ सहित सहेउं-हेतु के साथ सकारणं-अपवादादि कारण के साथ सुत्तं-गद्यरूप से पाठ अत्थं च-अर्थ के साथ तदुभयं च-सूत्र तथा अर्थ के साथ च-शब्द समुच्चय अर्थ में है भुज्जो-२, पुनः-२ उवदंसेति-उपदेश करते हैं अर्थात् उपदेश किया गया है त्ति बेमि-इस प्रकार मैं कहता हूं / आयतिठाणे णामं दसमी दसा-आयति-स्थान नाम वाली दशवी दशा समत्ता-समाप्त हुई / मूलार्थ-उस काल और उस समय में श्रमण भगवान् महावीर राजगृह नगर के गुणशील नाम वाले चैत्य में बहुत से श्रमण, श्रमणी, श्रावक, श्राविका, देव और देवियों के तथा देव, मनुष्य और असुरों की सभा के बीच में विराजमान होकर इस प्रकार प्रतिपादन करते हैं, इस / * प्रकार भाषण करते हैं, इस प्रकार फलाफल दिखाते हुए निरूपण करते

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