Book Title: Dasha Shrutskandh Sutram
Author(s): Atmaramji Maharaj
Publisher: Aatmaram Jain Dharmarth Samiti

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Page 522
________________ 454 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् दशमी दशा टीका-इस सूत्र में भी पूर्व सूत्र से सम्बन्ध रखते हुए निदान-रहित कर्म का ही फल वर्णन किया गया है / जो व्यक्ति निदान रहित क्रिया करेगा उसको उसका यह उत्कृष्ट फल मिलेगा कि वह उसी जन्म में मोक्ष की प्राप्ति कर सकेगा, क्योंकि मोक्ष प्राप्ति में किये हुए कर्म ही प्रतिबन्धक होते हैं, जब वे ही नहीं होंगे तो मोक्ष-प्राप्ति स्वतः हो जायगी / उच्च क्रियाओं का कल्याण-रूप फल अवश्य होता है / यहां संयम-रूपी उच्च क्रिया का यह फल हुआ कि उसका करने वाला उसी जन्म में निर्वाण-पद की प्राप्ति कर लेता है / इस कथन से यह भी सिद्ध हुआ कि निदान-कर्म-रहित संयम क्रिया ही कल्याण-रूप फल के देने वाली होती है / अब सूत्रकार भगवान् के उपदेश की सफलता के विषय में कहते हैं: तते णं बहवे निग्गंथा य निग्गंथीओ य समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म समणं भगवं महावीर वंदंति नमसंति, वंदित्ता नमंसित्ता तस्स ठाणस्स आलोयंति पडिक्कमति जाव अहारिहं पायच्छित्तं तवो-कम्म पडिवज्जति / ___ ततो नु बहवो निर्ग्रन्थाश्च निर्ग्रन्थ्यश्च श्रमणस्य भगवतो महावीरस्यान्तिकादेनमर्थं श्रुत्वा, निशम्य श्रमणं भगवन्तं महावीरं वन्दन्ते नमस्यन्ति, वन्दित्वा नत्वा तत्स्थानमालोचयन्ति प्रतिक्रामन्ति यावद् यथार्ह प्रायश्चित्तं तपः-कर्म प्रतिपद्यन्ते / पदार्थान्वयः-तते णं-इसके अनन्तर बहवे-बहुत से निग्गंथा-निर्ग्रन्थ य-और निग्गंथीओ-निर्ग्रन्थियां समणस्स-श्रमण भगवओ-भगवान् महावीरस्स-महावीर के अंतिए-पास से एयमटुं-इस अर्थ को सोच्चा-श्रवण कर और णिसम्म-हृदय में अवधारण कर समणं-श्रमण भगवं-भगवान् महावीरं-महावीर को वंदंति-वन्दन करते हैं और उनको नमसंति-नमस्कार करते हैं वंदित्ता-वन्दना कर और नमंसित्ता-नमस्कार कर तस्स ठाणस्स-उसी स्थान पर आलोयंति-आलोचना करते हैं पडिक्कम्मंति-प्रतिक्रमण करते हैं अर्थात् पाप कर्मों से पीछे हट जाते हैं जाव-यावत् अहारिह-यथायोग्य पायच्छित्तं-प्रायश्चित तवो-कम्म-तपः-कर्म पडिवज्जंति-ग्रहण करते हैं /

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