________________ 424 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् दशमी दशा अहं ण परिघेतव्वो अण्णे परिघेतव्वा अहं ण उवद्दवेयव्वो अण्णे उवद्दवेयव्वा / एवामेव इत्थिकामेहिं मुच्छिया गढिया गिद्धा अज्झोववण्णा जाव कालमासे कालं किच्चा अण्णतराई असुराई किब्बिसियाई ठाणाई उववत्तारो भवंति / ततो विमुच्चमाणा भुज्जो एल-मूयत्ताए पच्चायति / एवं खलु समणाउसो तस्स णिदाणस्स जाव णो संचाएति केवलि-पण्णत्तं धम्म सद्दहित्तए वा / ___ अन्यत्ररुची रुचि-मात्रया स च भवति / अथ य इम आरण्यका आवसथिका ग्रामान्तिका क्वचिद् राहसिका न बहुसंयता न बहु-विरताः सर्व-प्राणि-भूत-जीव-सत्त्वेष्वात्मनः सत्यमृषे विप्रतिवदन्ति / अहं न हन्तव्योऽन्ये हन्तव्या अहन्ना-ज्ञापयितव्योऽन्य आज्ञापयितव्या अहन्न परितापयितव्योऽन्ये परितापयितव्या अहन्न परिगृहीतव्योऽन्ये परिगृहीतव्या अंह नोपद्रवितव्योऽन्य उपद्रवितव्याः / एवमेव स्त्री-कामेषु मूर्छिता ग्रथिता गृद्धा 'अध्युपपन्ना यावत्कालमासे कालं कृत्वासुराणां किल्बिषकानां स्थानेषूपपत्तारो भवन्ति / ततो विमुच्यमाना भूय एड-मूकत्वेन प्रत्यायान्ति / एवं खलु श्रमण ! आयुष्मन् ! तस्य निदानस्य यावन्न शक्नोति केवलि-प्रज्ञप्तं धर्मं श्रद्धातुं वेत्यादि / पदार्थान्वयः-अण्णरुई-उसकी जैन-दर्शन के अतिरिक्त अन्य दर्शनों में रुचि होती है और फिर वह रुइ-मादाए-रुचि की मात्रा से से य भवति-वह नीचे लिखे पुरुषों के समान हो जाता है, जैसे-से-अथ जे-जो इमे-ये प्रत्यक्ष आरण्णिया–अरण्य (जङ्गल) में रहते हैं आवसहिया-पत्तों की झोपड़ियों में रहने वाले हैं गामंतिया-ग्राम के समीप रहने वाले हैं कण्हुइ रहस्सिया-किसी भी कार्य में रहस्य रखने वाले हैं णो बहु-संजया-द्रव्य से भी बहुत संयत नहीं होते अर्थात् उनका चित्त इस प्रकार चञ्चल होता है कि द्रव्यों की ओर से भी उसको अपने वश में नहीं रख सकते सव्व-पाण-भूय-जीव-सत्तेसु-सब प्राणी, भूत, जीव और सत्त्व विषयक हिंसा से भी णो बहु-विरया-जो निवृत्त नहीं हुए हैं ! अप्पणा-अपने सच्चा-मोसाइं-सच और झूठ को एवं-इस प्रकार विपडिवदंति-झगड़ों से S Sann04. 000