________________ है नवमी दशा .. हिन्दीभाषाटीकासहितम / 313 अब सूत्रकार इसी विषय में चौदहवें स्थान का विषय वर्णन करते हैं :ईसरेण अदुवा गामेणं अणिसरे ईसरीकए / तस्स संपय-हीणस्स सिरी अतुलमागया / / ईश्वरेणाथवा ग्रामेणानीश्वर ईश्वरीकृतः / . तस्य सम्पत्ति-हीनस्यातुला श्रीरुपागता / / पदार्थान्वयः-ईसरेण-ईश्वर (स्वामी) ने अदुवा-अथवा गामेणं-गांव के लोगों ने किसी अणिसरे-अनीश्वर (दीन) व्यक्ति को ईसरीकए-ईश्वर बना दिया हो और उनकी कृपा से तस्स-उस संपय-हीणस्स–सम्पत्ति-हीन पुरुष के पास अतुलं-बहुत सी सिरी-लक्ष्मी आगया-आ गई हो / मूलार्थ-किसी स्वामी ने अथवा गांव के लोगों ने किसी अनीश्वर (दीन) व्यक्ति को ईश्वर (स्वामी) बना दिया हो और उनकी सहायता से उसके पास अतुल सम्पत्ति हो गई हो / टीका-इस सूत्र में भी कृतघ्नता-जनित महा-मोहनीय कर्म का ही विषय वर्णन किया गया है / यदि कोई श्रेष्ठ पुरुष अथवा ग्राम के जन मिलकर किसी दरिद्री और अनाथ को अपनी कृपा से 'ईश्वर' बना दें और उसका समुचित रूप से पालन कर तथा शिक्षा देकर उसको एक माननीय व्यक्ति बना दें और समय पाकर यदि वह एक सुप्रसिद्ध धनिक हो जाय, लक्ष्मी उसके पैर चूमने लगे तथा वह सब प्रकार से ऐश्वर्यवान् हो जाय और फिर : ईसा-दोसेण आविट्ठे कलुसाविल-चेयसे / ... जे अंतरायं चेएइ महामोहं पकुव्वइ / / 14 / / ईर्ष्या-दोषेणाविष्टः कलुषाविल-चेतसा / योऽन्तरायं चेतयते महामोहं प्रकुरुते / / 14 / / पदार्थान्वयः-ईसा-दोसेण-ईर्ष्या-दोष से आविढे-युक्त कलुसाविल-पाप से मलिन चेयसे-चित्त से (अथवा चित्त वाला) जे-जो अंतरायं-अपने उपकारी के लाभ में अन्तराय