________________ 1 378 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् दशमी दशा एवं खलु समणाउसो मए धम्मे पण्णत्ते / इणमेव निग्गंथे पावयणे सच्चे, अणुत्तरे, केवले, संसुद्धे, णेआउए, सल्ल-कत्तणे, सिद्धि-मग्गे, मुत्ति-मग्गे, निज्जाण-मग्गे, निव्वाण-मग्गे, अवितहमविसंदिद्धे, सव्व-दुक्ख-प्पहीण-मग्गे / इत्थं ठिया जीवा सिझंति, बुझंति, मुच्चंति, परिनिव्वायंति, सव्वदुक्खाणमंतं करेंति / ___ एवं खलु श्रमणः! आयुष्मन्तः! मया धर्मः प्रज्ञप्तः / इदमेव निर्ग्रन्थ-प्रवचनं सत्यम्, अनुत्तरम्, प्रतिपूर्णम्, केवलम्, संशुद्धम्, नैयायिकम्, शल्य-कर्तनम्, सिद्धि-मार्गः, मुक्ति-मार्गः, निर्याण-मार्गः, निर्वाण-मार्गः, अवितथम्, अविसन्दिग्धम्, सर्वदुःखप्रहीणमार्गः, अत्रस्थिताः जीवाः सिध्यन्ति, बुद्ध्यन्ति, मुच्यन्ते, परिनिर्वान्ति, सर्वदुःखानामन्तं कुर्वन्ति / ___पदार्थान्वयः-समणाउसो-हे दीर्घायु वाले श्रमणो ! एवं खलु-इस प्रकार निश्चय से 'मए-मैंने धम्मे-धर्म पण्णत्ते-प्रतिपादन किया है इणमेव-यह प्रत्यक्ष निग्गंथे-निर्ग्रन्थ पावयणे-प्रवचन, द्वादशाङ्गरूप सच्चे-सत्य है अणुत्तरे-अनुत्तर अर्थात् सबसे उत्तम है पडिपुण्णे-प्रतिपूर्ण है केवले-अद्वितीय है संसुद्धे-संशुद्ध है णेआउए-मोक्ष का प्रापक होने से नैयायिक अर्थात् सर्वथा न्याय-पूर्ण है सल्लकत्तणे-माया, नियाण और मिथ्यात्व रूपी शल्य-कर्म का छेदन या विनाश करने वाला है सिद्धि-मग्गे-सिद्धि का मार्ग है मुत्ति-मग्गे-मुक्ति (कर्म-क्षय करने) का मार्ग है निज्जाण-मग्गे-मोक्ष का मार्ग है निव्वाण-मग्गे-सांसारिक कर्मों के विनाश करने का मार्ग है अविसंदिद्धं-सन्देह रहित या अव्य-वच्छिन्न है सव्वदुक्ख-प्पहीणमग्गे-सब दुःखों के क्षीण होने का मार्ग है / इत्थं-इस प्रकार ठिया-निर्ग्रन्थ-प्रवचन में स्थिर जीवा-जीव सिझंति-सिद्ध होते हैं बुझंति-बुद्ध होते हैं और सव्वदुक्खाणं-सब दुःखों के अंतं करेंति-अन्त करने वाले होते हैं | मूलार्थ-हे दीर्घजीवी श्रमणो! इस प्रकार मैंने धर्म प्रतिपादन किया __ है / यह निर्ग्रन्थ-प्रवचन सत्य है, सर्वोत्तम है, प्रतिपूर्ण है, अद्वितीय है,