________________ 360 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् दशमी दशा में उपस्थित हैं कृपया आज्ञा कीजिए / इस प्रकार वह निर्ग्रन्थ उस निदान कर्म के फल को मनुष्य जन्म में भोगते हुए विचरता है / अब सूत्रकार निदान कर्म में धर्म के विषय में कहते हैं: तस्स णं तहप्पगारस्स पुरिसजातस्स तहारूवे समणे वा माहणे वा उभओ कालं केवलि-पन्नत्तं धम्म-मातिक्खेज्जा ? हंता! आइक्खेज्जा, से णं पडिसुणेज्जा णो इणढे समढे / अभविए णं से तस्स धम्मस्स सवणाए / से य भवइ महिच्छे महारंभे महा-परिग्गहे अहम्मिए जाव दाहिणगामी नेरइए आगमिस्साणं दुल्लह-बोहिए यावि भवति / तं एवं खलु समणाउसो तस्स णिदाणस्स इमेतारूवे फल-विवागे जं णो संचाएति केवलि-पन्नत्तं धम्म पडिसुणित्तए / तस्य नु तथा-प्रकारस्य पुरुष-जातस्य तथा-रूपः श्रमणो वा माहनो वा उभय-कालं केवलि-प्रज्ञप्तं धर्ममाख्यायात् ? हन्त! आख्यायात्, स च प्रतिश्रयान्नायमर्थः समर्थः / अभव्यो नु स तस्य धर्मस्य श्रवणाय / स च भवति महेच्छो महारम्भो महा-परिग्रहोऽधार्मिको यावंद् दक्षिणगामि-नैरयिक आगमिष्यति दुर्लभ-बोधिकश्चापि भवति / तदेवं खलु श्रमणाः ! आयुष्मन्तः ! तस्य निदानस्यायमेतादृगृपः फल-विपाको यन्नैव शक्नोति केवलि-प्रज्ञप्तं धर्मं प्रतिश्रोतुम् | पदार्थान्वयः-तस्स णं-उस तहप्पगारस्स-उस तरह के पुरिसजातस्स-पुरुष को तहारूवे-तथारूप समणे-श्रमण वा-अथवा माहणे-श्रावक उभओ कालं-दोनों समय केवलि-पन्नत्तं-केवलि-प्रतिपादित धम्म-धर्म आतिखेज्जा-कहे ? हंता-हां! आइक्खेज्जा-कहे किन्तु से णं-वह पुरुष पडिसुणेज्जा-उसको सुने या अंगीकार करे / णो इणढे समढे-यह सम्भव नहीं से-वह तस्स-उस धम्मस्स-धर्म को सवणाए-सुनने के अभविए णं-अयोग्य है / से य-वह तो महिच्छे-उत्कट इच्छाओं वाला महारंभे-बड़े-बड़े