________________ दशमी दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 361 हिंसा कार्यों को आरम्भ करने वाला महा-परिग्गहे-बड़े परिग्रह (ममता) वाला अहम्मिए-अधार्मिक जाव-यावत् दाहिणगामी-दक्षिणगामी नेरइय-नैरयिक और आगमिस्साणं-आगामी जन्म में दुल्लभ-बोहिए यावि-दुर्लभ-बोधि वाला भी भवइ-होता है / एवं खलु-इस प्रकार निश्चय से समणाउसो-हे चिरजीवी श्रमणो! तस्स-उस णिदाणस्स-निदान कर्म का इमे-यह एयारूवे-इस प्रकार का फल-विवागे-पाप-फल-रूप विपाक (परिणाम) है जं-जिससे केवलि-पन्नत्तं-केवली भगवान् के प्रतिपादित धम्म-धर्म पडिसुणित्तए-सुनने के लिए णो संचाएति-समर्थ नहीं हो सकता / मूलार्थ-क्या इस प्रकार के पुरुष को तथा-रूप श्रमण या माहन (श्रावक) दोनों समय केवलि-प्रतिपादित धर्म सुनावे? हां! कथन करे, किन्तु यह सम्भव नहीं कि वह उस धर्म को सने क्योंकि वह उस धर्म के सुनने के योग्य नहीं / वह तो उत्कट इच्छा वाला बड़े-बड़े कार्यों को आरम्भ करने वाला, अधार्मिक, दक्षिण-पथ-गामी नारकी और दूसरे जन्म में दुर्लभ-बोधी होता है / हे चिरजीवी श्रमणो! इस प्रकार उस निदान कर्म का इस प्रकार पाप-रूप फल होता है कि जिससे आत्मा में केवलि-प्रतिपादित धर्म सुनने की शक्ति नहीं रहती / - टीका-इस सूत्र में उक्त निदान कर्म का धर्म-विषयक फल वर्णन किया गया है | श्री गौतम स्वामी ने श्री श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से प्रश्न किया कि हे भगवन् ! क्या इस प्रकार निदान कर्म वाला भोगी पुरुष तथा-रूप श्रमण या श्रावक से दोनों समय केवलि-प्रतिपादित धर्म सुन सकता है ? भगवान् ने उत्तर दिया कि हे गौतम ! श्रमण या श्रमणोपासक उसको धर्म तो सुना सकते हैं किन्तु वह निदान कर्म के कारण धर्म सुन नहीं सकेगा / हे आयुष्मन् ! श्रमण ! उस निदान का इस प्रकार का पाप-रूप फल होता कि उसका करने वाला केवलि-प्रतिपादित धर्म के सुनने के अयोग्य ही हो जाता है, अतः निदान कर्म सर्वथा हेय रूप है, इसके तीन भेद होते हैं-जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट, यहां उत्कृष्ट निदान कर्म के करने वाला जीव ही धर्म श्रवण करने के अयोग्य बताया गया है, शेष नहीं / मध्यम और जघन्य रस वाले जीव निदान कर्म के उदय होने के पश्चात् धर्म-श्रवण या सम्यक्त्वादि की प्राप्ति कर सकते हैं, इस में कृष्ण वासुदेव या द्रौपदी आदि के अनेक शास्त्रीय प्रमाण विद्यमान हैं | 3