________________ नवमी दशा .. हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 326 लोगों में उनका अपयश करता है और उनकी ओर से सब तरह नास्तिक बन जाता है तथा उपलक्षण जो शद्ध भावों से मर कर देव हआ है उसकी निन्दा करता है. वह महा-मोहनीय कर्म की उपार्जना करता है / कहने का तात्पर्य इतना ही है कि सद्वस्तु को 'सद्' मानना ही सत्य है / जो 'सत्' को 'असत्' सिद्ध करता है, वह महा-मोहनीय कर्म की उपार्जना करता है / अब सूत्रकार तीसवें स्थान का वर्णन करते हुए देवों के ही विषय में कहते हैं :अपस्समाणो पस्सामि देवे जक्खे य गुज्झगे / अण्णाणी जिण-पूयट्टी महामोहं पकुव्वइ / / 30 / / अपश्यन् पश्यामि देवान् यक्षांश्च गुह्यकान् / अज्ञानी जिन-पूजार्थी महामोहं प्रकुरुते / / 30 / / पदार्थान्वयः-अण्णाणी-अज्ञानी पुरुष जिण-पूयट्ठी-'जिन' के समान पूजा की इच्छा करने वाला जो देव-देवों को जक्खे-यक्षों को गुज्झगे-भवन-पति देवों को अपस्समाणे-न देखता हुआ भी कहता है कि पस्सामि-मैं इनको देखता हूं वह महामोह-महा-मोहनीय कर्म की पकुव्वइ-उपार्जना करता है / मूलार्थ-जो अज्ञानी 'जिन' के समान पूजा की इच्छा करने वाला देव, यक्ष और गुह्यों को न देखता हुआ भी कहता है कि मैं इनको देखता हूं वह महा-मोहनीय-कर्म की उपार्जना करता है / - टीका-इस सूत्र में अपनी असत्य कीर्ति प्रख्यापन के विषय में कहा गया है / जो अज्ञानी व्यक्ति, श्रीभगवान् 'जिन' के समान अपनी पूजा की इच्छा करने वाला, लोगों से कहता फिरता है कि मैं देव-ज्योतिष और वैमानिक, यक्ष बाण व्यन्तर और गुह्यक-भवन-पति आदि को देखता हूं और वे मेरे पास आते हैं, किन्तु वह वास्तव में उनको नहीं देखता केवल यश-प्राप्ति के लिए इस प्रकार मिथ्या भाषण करता है, वह महा-मोहनीय कर्म की उपार्जना करता है / क्योंकि वह यश-प्राप्ति के लिए इतना उत्सुक रहता है कि यह भी नहीं समझता है कि झूठ बोलने से मैं एक नया पाप कर रहा हूं / वह मूर्ख गुणों के न होने पर निरर्थक श्री जिनेन्द्र देव के समान पूजा की इच्छा से 'देव-दर्शन' के विषय में भी मिथ्या भाषण करता है, अतः उसको महा-मोहनीय कर्म के बन्धन में आना पड़ता है /