________________ - दशमी दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / . 375 नैवास्माभिर्दृष्टा देव्यो देवलोके, साक्षादियं देवी / यद्यस्य सुचरितस्य तपो-नियम-ब्रह्मचर्य-वासस्य कल्याणः फलवृत्तिविशेषोऽस्ति, वयमप्यागमिष्यति (काले) इमानेतद्रूपानुदारान् यावद् विहरामः / तदेतत्साधु / पदार्थान्वयः-अहो-विस्मय है कि णं-वाक्यालङ्कार के अर्थ में है, चेल्लणादेवी-चेल्लणादेवी महिड्ढिया अत्यन्त ऐश्वर्य वाली जाव-यावत् महा-सुक्खा अधिक सुख वाली जा णं-जो ण्हाया-स्नान कर कय-बलिकम्मा-बलि-कम्मा-बलि-कर्म कर कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ता-कौतुक, मङ्गल और प्रायश्चित कर जाव-यावत् सव्वालंकार-विभूसिया-सब अलंकारों से विभूषित होकर सेणिएणं रन्ना-श्रेणिक राजा के सद्धिं-साथ उरालाइं-उत्तम जाव-यावत् माणुसगाई-मनुष्य-सम्बन्धी भोग-भोगाई-काम-भोगों को भुंजमाणी-भोगती हुई विहरइ-विचरती है | मे-हमने देव-लोगंसि-देव-लोक में देवीओ-देवियां न नहीं दिट्ठाओ-देखी हैं किन्तु इमा-यह खलु-निश्चय से सक्खं साक्षात् देवी-देवी है / जइ-यदि इमस्स-इस सुचरियस्स-सुचरित्र का तथा तव-तप नियम-नियम और बंभचेर-वासस्स-ब्रह्मचर्य का कल्लाणे-कल्याणकारी फलवित्ति-विसेसे-फल-वृत्ति विशेष अत्थि-है तो वयमवि-हम भी आगमिस्साणं-आगामी काल में इमाइं-इन एयारूवाइं-इस प्रकार के उरालाइं-उत्तम जाव-सम्पूर्ण काम-भोगों को भोगते हुए विहरामो-विचरण करेंगे से तं साहुणी-यह हमारा विचार अत्यन्त उत्तम मूलार्थ-महाराणी चेल्लादेवी को देखकर साध्वियाँ विचार करती हैं कि आश्चर्य है कि यह चेल्लणादेवी, अत्यन्त ऐश्वर्य-शालिनी तथा बड़े-बड़े सुखों को भोगती हुई स्नान कर, बलि-कर्म कर, कौतुक, मङ्गल और प्रायश्चित कर तथा सब प्रकार के अलंकारों से विभूषित होकर श्रेणिक राजा के साथ उत्तमोत्तम भोगों को भोगती हुई विचरण करती है / हमने देव-लोक में देवियां नहीं देखी हैं किन्तु यह साक्षात् देवी है / यदि हमारे इस सच्चरित्र, तप, नियम और ब्रह्मचर्य का कोई कल्याण-वृत्ति विशेष फल है तो हम भी आगामी काल में इस प्रकार के उत्तम भोगों को भोगते हुए विचरण करेंगी / यह हमारा विचार श्रेष्ठ है।