________________ 372 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् दशमी दशा . - टीका-इस सूत्र में वर्णन किया गया है कि राजा श्रेविक और चेल्लणा देवी को देखकर कई मुनियों के चित्त में यह संकल्प उत्पन्न हुआ / जैसे:___ अहो णं सेणिए राया महिड्ढिए जाव महा-सुक्खे जे णं ण्हाए, कय-बलिकम्मे, कय-को उय-मंगल-पायच्छित्ते, सव्वालंकार-विभूसिए चेल्लणादेवीए सद्धिं उरालाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणे विहरति / न मे दिट्ठा देवा देवलोगसि सक्खं खलु अयं देवे | जइ इमस्स तवनियम-बंभचेरगुत्ति-फलवित्ति-विसेसे अत्थि तया वय-मवि आगमेस्साई इमाई ताई उरालाई एयारूवाई माणुस्सगाई भोगभोगाई भुंजमाणा विहरामो / से तं साहु / अहो नु श्रेणिको राजा महर्द्धिको यावन्महासुखो यः स्नातः, कृत-बलिकर्मा, कृत-कौतुक-मङ्गल-प्रायश्चितः, सर्वालङ्कार-विभूषितचेल्लणादेव्याः सार्द्धमुदारान् मानुषकान् भोगभोगान् भुज्ञन् विहरति / नास्माभिर्दृष्टा देवा देवलोके, साक्षात्खल्वयं देवः / यद्येतस्यास्तपोनियम-ब्रह्मचर्य-गुप्तेः फलवृत्तिविशेषोऽस्ति तदा वयमप्यागमिष्यति (काले) इमानुदारांस्तानेतद्रूपान् मानुषकान् भोगभोगान् भुञ्जन्तो विचरिष्यामः / एतत्साधु / पदार्थान्वयः-अहो आश्चर्य है णं-वाक्यालङ्कार के लिए है सेणिए राया-श्रेणिक राजा महिड्ढिए-महा ऐश्वर्य वाला महा-सुक्खे-अत्यधिक सुख वाला जे णं-जिसने ण्हाए-स्नान किया और कय-बलिकम्मे-बलि-कर्म किया कय-कोउय-मंगल-पायच्छित्ते -कौतुक कर्म और माङ्गलिक कामनाओं के लिए प्रायश्चित्त किया और चेल्लणादेवीए सद्धिं-चेल्लणादेवी के साथ उरालाइं-श्रेष्ठ माणुस्सगाई-मनुष्य-सम्बन्धी .. भोग-भोगाई-काम-भोगों को भुंजमाणे-भोगता हुआ विहरति-विचरता है / मे-हमने