________________ - 260 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् सप्तमी दशा ___टीका-इस सूत्र से प्रतिपादन किया गया है कि यदि मार्ग में चलते हुए साधु के पैर में कण्टक आदि बैठ जायं तो उसको क्या करना चाहिए / जब प्रतिमाधारी मुनि अपनी वृत्ति के अनुसार गमन-क्रिया में प्रयत्न-शील हो और उसके पैर में काँटा, कङ्कर आदि बैठ जायं तो उसको उनको निकालना नहीं चाहिए नांही उनकी विशुद्धि करनी चाहिए, किन्तु ईर्या-समिति के अनुसार गमन क्रिया में ही प्रवृत्त रहना चाहिए, क्योंकि प्रतिमाधारी को शरीर का ममत्व त्याग कर परिषहों के सहने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए / यही प्रतिमा धारण करने का मुख्य उद्देश्य है / अब सूत्रकार फिर उक्त विषय में ही कहते हैं : मासियं भिक्खु-पडिमं पडिवनस्स जाव अच्छिसि पाणाणि वा बीयाणि वा रए वा परियावज्जेज्जा, नो से कप्पति नीहरित्तए वा विसोहित्तए वा, कप्पति से अहारियं रियत्तए / मासिकी भिक्षु-प्रतिमा प्रतिपन्नस्य यावदक्ष्णोः प्राणिनो वा बीजानि वा रजांसि वा पर्यापद्येरन्, नैव स कल्पते निर्हर्तुं वा विशोधयितुं वा, कल्पते स यथेर्यमर्तुम् / पदार्थान्वयः-मासियं-मासिकी भिक्खु-पडिमं–भिक्षु-प्रतिमा. पडिवन्नस्स–प्रतिपन्न साधु की जाव-यावत् अच्छिसि-आंखों में पाणाणि-प्राणी वा-अथवा बीयाणि-बीज वा-अथवा रए वा-रज परियावज्जेज्जा-घुस जाय तो से-उस साधु को नीहरित्तए-निकालना वा-अथवा विसोहित्तए-विशोधन करना नो कप्पति-योग्य नहीं किन्तु से-उसको अहारियं-ईर्या-समिति के अनुसार रियत्तए-गमन करना कप्पति-योग्य है / मूलार्थ-मासिकी भिक्षु-प्रतिमा-प्रतिपन्न साधु की आंखों में यदि कोई जीव, बीज या धूलि पड़ जाय तो साधु को उसे निकालना अथवा विशोधन नहीं करना चाहिए, किन्तु ईर्या-समिति के अनुसार गमन क्रिया में ही प्रवृत्त रहना चाहिए / ___टीका-इस सूत्र में प्रतिपादन किया गया है कि जब मासिकी प्रतिमा-प्रतिपन्न साधु ईर्या-समिति के अनुसार गमन कर रहा हो, उस समय यदि उसकी आंख में मशक