________________ . है द्वितीया दशा.. हिन्दीभाषाटीकासहितम् / क्योंकि जीव-रक्षा समाधि के लिए आवश्यक है अतः उपलक्षण से तेजस्काय और वायु-काय जीवों की रक्षा भी अवश्य करनी चाहिए / जैसे-अग्निकाय जीवों की रक्षा के लिए जहां पर अग्नि-काय-समारम्भ हो रहा हो वहां पर नहीं बैठना चाहिए और शीत-काल में अग्नि के समीप बैठ कर उसका सेवन भी नहीं करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से अग्नि के न्यून तथा अधिक होने पर चित्त में अवश्य ही अनेक तरह के संकल्प विकल्प होंगे और समय-२ पर इसको (अग्नि को) अधिक प्रज्वलित करने के लिए इन्धन (लकड़ी) आदि उसमें डालने पड़ेंगे, जिससे अग्निकाय जीवों की विराधना अनिवार्य है / इसी प्रकार वायु-काय जीवों के विषय में भी जानना चाहिए / यदि यत्न-पूर्वक स्फोटादि करेगा तब ही वायु-काय जीवों की रक्षा हो सकती है | . सम्पूर्ण कथन का तात्पर्य यह है कि शबल दोष-रहित होकर ही प्रथम महाव्रत की पालना करनी चाहिए / ... अब सूत्रकार वनस्पति की प्रधानता सिद्ध करने के लिए फिर वनस्पति के विषय में ही कहते हैं / आउट्टियाए मूल-भोयणं वा कंद-भोयणं वा खंध-भोयणं वा तया-भोयणं वा, पवाल-भोयणं वा पत्त-भोयणं वा पुष्फ-भोयणं वा फल-भोयणं वा बीय-भोयणं वा हरिय-भोयणं वा भुंजमाणे सबले / / 18 / / आकुट्या मूल-भोजनं वा कंद-भोजनं वा स्कन्ध-भोजनं वा त्वग-भोजनं वा प्रवाल-भोजनं वा पत्र-भोजनं वा पुष्प-भोजनं वा फल-भोजनं वा बीज-भोजनं वा हरित-भोजनं वा भुजानः शबलः / / 18 / / पदार्थान्वयः-आउट्टियाए-जानकर मूल-भोयणं-मूल का भोजन वा-अथवा कंद-भोयणं-कंद का भोजन वा-अथवा खंध-भोयणं-स्कन्ध का भोजन वा-अथवा तया-भोयणं-त्वक् का भोजन वा-अथवा पवाल-भोयणं-प्रबाल का भोजन वा-अथवा पत्त-भोयणं-पत्र का भोजन वा-अथवा पुष्फ-भोयणं-पुष्पों का भोजन वा-अथवा फल-भोयणं... फलों का भोजन वा-अथवा बीय-भोयणं-बीजों का भोजन वा-अथवा