________________ षष्ठी दशा . हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 217 भवति / आरंभे से अपरिण्णाए भवति / से णं एयारूवेण विहारेण विहरमाणे जहन्नेण एगाहं दुयाहं तियाहं वा जाव उक्कोसेण सत्त मासे विहरेज्जा / से तं सत्तमा उवासग-पडिमा / / 7 / / अथापरा सप्तम्युपासक-प्रतिमा / सर्व-धर्म-रुचि-श्चापि भवति / यावद् राव्यपरात्रं वा * ब्रह्मचारी | सचित्ताहारस्तस्य परिज्ञातो भवति / आरम्भस्यापरिज्ञातो भवति / स न्वेतद्रूपेण विहारेण विहरञ्जघन्येनैकाहं वा द्वयहं वा त्र्यहं वा यावदुत्कर्षेण सप्त मासान् विहरेत् / सेयं सप्तम्युपासक-प्रतिमा / / 7 / / पदार्थान्वयः-अहावरा-इसके अनन्तर सत्तमा-सातवीं उवासग-पडिमाउपासक-प्रतिमा प्रतिपादन करते हैं / इस प्रतिमा को ग्रहण करने वाले की सव्व-धम्म-सर्व-धर्म-विषयक रुई-रुचि यावि भवति होती है जाव-यावत् राओवरायं-दिन में और रात्रि में बंभयारी-ब्रह्मचारी रहता है / आरंभे-कृषि आदि पापपूर्ण व्यापार से-उसका अपरिण्णाए-परित्यक्त नहीं भवति-होता / से-वह एयारूवेण-इस प्रकार के विहारेण-विहार से विहरमाणे-विचरता हुआ जहन्नेण-कम से कम एगाह-एक दिन दुयाहं-दो दिन तियाहं-तीन दिन जाव-यावत् उक्कोसेण-उत्कर्ष से सत्त मासे-सात मास पर्यन्त विहरेज्जा-विचरण करे / सेतं-यही सत्तमा-सातवीं उवासग-पडिमाउपासक-प्रतिमा प्रतिपादन की है। मूलार्थ-इसके अनन्तर सातवीं प्रतिमा प्रतिपादन करते हैं / जो इस प्रतिमा को ग्रहण करता है उसकी सर्व-धर्म-विषयक रुचि होती है / वह दिन और रात सदैव ब्रह्मचारी रहता है / वह सचित्त आहार का परित्याग कर देता है, परन्तु आरम्भ (कृषि आदि व्यापार) का नहीं कर सकता / वह इस वृत्ति से कम से कम एक दो या तीन और यावत् उत्कर्ष से सात महीने तक विचरता है / यही सातवीं उपासक-प्रतिमा है / टीका-इस सूत्र में सातवीं प्रतिमा का विषय वर्णन किया गया है / जो इसको . धारण करता है वह पहली प्रतिमा से लेकर छठी प्रतिमा तक के सम्पूर्ण नियमों का है - - -