________________ - 00 Pen सप्तमी दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 2439 उत्पन्न होने पर उनको भली भांति सहन कर लेता है / प्रतिमा धारी भिक्षु को उपसर्गों (आकस्मिक विपत्तियों) का इस प्रकार सहन करना चाहिए, जिस प्रकार एक नव-विवाहिता वधू श्वशुर घर में सब के वचन चुप-चाप सहन कर लेती है / उस समय उसको क्षमापूर्वक अदैन्य-भाव से अनुकूल या प्रतिकूल सब परिषहों (कष्टों) के सहन करने की शक्ति धारण करनी चाहिए / वह उनको सहन भी कर सकता है / क्योंकि जिस व्यक्ति ने जीवन की आशा और मृत्यु का भय छोड़ दिया है, उसके लिए परिषहों का सहन करना कोई कठिन कार्य नहीं है / वह निश्चल भाव से उनका सहन करता हुआ विचरे / अब सूत्रकार फिर उक्त विषय का ही वर्णन करते हैं : मासियं णं भिक्खु-पडिमं पडिवनस्स अणगारस्स कप्पति एगा दत्ति भोयणस्स पडिगाहित्तए एगा पाणगस्स / अण्णाय उञ्छ, सुद्धं उवहडं, निज्जूहित्ता बहवे दुप्पय-चउप्पय-समणमाहण-अतिहि-किवण-वणीमग, कप्पइ से एगस्स भुंजमाणस्स पडिगाहित्तए / णो दुण्हं णो तिण्हं णो चउण्हं णो पंचण्हं णो गुम्विणीए, णो बाल-वच्छए, णो दारगं पेज्जमाणीए, णो अंतो एलुयस्स दोवि पाए साहटु दलमाणीए, णो बहिं एलुयस्स दोवि पाएं साह? दलमाणीए, एगं पादं अंतो किच्चा एगं पादं बहिं किच्चा एलुयं विक्खंभइत्ता एवं दलयति एवं से कप्पति पडिगाहित्तए, एवं से नो दलयति एवं से नो कप्पति पडिगाहित्तए / ____ मासिकी भिक्षु-प्रतिमां प्रतिपन्नस्यानगारस्य कल्पते एका दत्तिर्भोजनस्य प्रतिग्रहीतुमेका पानकस्य / अज्ञातोञ्छं, शुद्धमुपहृतम्, निवर्त्य बहून् द्विपद-चतुष्पद-श्रमण-ब्राह्मणातिथि-कृपण-वनीपकान् कल्पते तस्यैकभुजानस्य प्रतिग्रहीतुम् / न द्वयोर्न त्रयाणां न चतुर्णां न पञ्चानां नो गुर्विण्याः, नो ,