________________ . पंचमी दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 127 समाधि उत्पन्न हो उसको काल-समाधि कहते हैं / भाव-समाधि ज्ञान, दर्शन, चरित्र और तप रूप होती है / जिस समय उक्त चारों में चित्त एकाग्र वृत्ति से लग जाय उस समय भाव-समाधि की उत्पत्ति होती है / किन्तु यह सब क्षेत्र आदि की विशुद्धि से ही होती है / यदि क्षेत्र आदि शुद्ध होंगे तो चित्त अनायास ही समाधि की ओर ढल जायगा / इस प्रस्तुत दशा में भाव-चित्त-समाधि का ही वर्णन किया गया है / उसका पहला सूत्र निम्नलिखित है:- . ____सुयं मे आउसं तेणं भगवया एवमक्खायं, इह खलु थेरेहिं भगवंतेहिं दस चित्त-समाहि-ठाणा पण्णत्ता / कयराइं खलु ताई थेरेहिं भगवंतेहिं दस चित्त-समाहि-ठाणा पण्णत्ता ? इमाई खलु ताई थेरेहिं भगवंतेहिं दस चित्त-समाहि-ठाणा पण्णत्ता, तं जहाः श्रुतं मयायुष्मन् ! तेन भगवतैवमाख्यातं, इह खलु स्थविरैर्भगवद्भिर्दश चित्त-समाधि-स्थानानि प्रज्ञप्तानि, कतराणि खल तानि स्थविरैर्भगवदिभर्दश चित्त-समाधि-स्थानानि प्रज्ञप्तानि ? इमानि खलु तानि स्थविरैर्भगवदिभर्दश चित्त-समाधि-स्थानानि प्रज्ञप्तानि, तद्यथाः पदार्थान्वयः-आउसं-हे आयुष्मन् शिष्य ! मे-मैंने सुयं-सुना है तेणं-उस भगवया-भगवान् ने एवं-इस प्रकार अक्खायं-प्रतिपादन किया है इह-इस जिन-शासन में खलु-निश्चय से थेरेहि-स्थविर भगवंतेहिं भगवंतों ने दस-दश चित्त-समाहि-चित्त-समाधि के ठाणा-स्थान पण्णत्ता-प्रतिपादन किये हैं / (शिष्य ने प्रश्न किया) कयरा-कौन से खल-निश्चय से ताई-वे थेरेहिं-स्थविर भगवंतेहिं-भगवन्तों ने दस-दश चित्त-समाधि के ठाणा-स्थान पण्णत्ता-प्रतिपादन किए हैं ? (गुरु उत्तर में कहते हैं) इमाइं-ये खलु-निश्चय से ताई-वे थेरेहिं-स्थविर भगवंतेहिं-भगवन्तों ने दस-दश चित्त-समाहि-चित्त-समाधि के ठाणा-स्थान पण्णत्ता-प्रतिपादन किये हैं तं जहा-जैसे: मूलार्थ-हे आयुष्मन् शिष्य ! मैंने सुना है उस भगवान् ने इस प्रकार प्रतिपादन किया है, इस जिन-शासन या लोक में स्थविर भगवन्तों ने दश . चित्त-समाधि के स्थान प्रतिपादन किये हैं, शिष्य ने प्रश्न किया-कौन से