________________ दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् द्वितीया दशा हरित-भोयणं-हरित-काय का भोजन वा-समुच्चय अर्थ में है भुंजमाणे-भोगते हुए सबले-शबल दोष लगता है / मूलार्थ-जानकर मूल, कन्द, स्कन्ध, त्वक्, प्रवाल, पत्र, पुष्प, फल, बीज और हरित के भोजन करने से शबल दोष होता है / ____टीका-इस सूत्र में स्पष्ट किया गया है कि साधु को सचित्त वनस्पति का आहार कदापि न करना चाहिए / यदि मुनि इस बात का विवेक न करेगा तो उसका प्रथम महा-व्रत शबल दोष-युक्त हो जाएगा / इस सूत्र में “भुंजमाणे” पाठ 'नयों' की अपेक्षा से ही लिया गया है / “कडेमाणे कडे" की तरह अतिक्रम, व्यतिक्रम और अतिचार पर्यन्त ही शबल दोष हो सकता है, यदि अनाचार का ही सेवन किया जाय तो उसे शबल दोष नहीं कहा जाएगा / अतः सिद्ध हुआ कि वनस्पति-विषयक शबल दोष से सदा बचा रहे / मूल सूत्र में वनस्पति के निम्नलिखित दश भेद वर्णन किये गये हैं:१-मूल . . . . . . . . . . अल्लक, मूलक सट्टादि / . २-कंद . . . . . . . . . . उत्पल, विदारी कन्दादि / ' ३-स्कन्ध . . . . . . . . . भूमि के ऊपर प्रस्फुटित शाखाएं / ४-त्वक . . . . . . . . . छाल | ५-प्रवाल . . . . . . . . . . नवीन पत्ते, कुंपल (अंकुर) आदि / ६-पत्र . . . . . . . . . ताम्बूल, वल्ली पत्रादि / ७-पुष्प . . . . . . . . . . मधूक पुष्पादि / ८-फल ... ... ... कर्कटी, त्रपु, आम्रादि / ६-बीज ......... शाल्यादि / १०-हरित ........ दूर्वादि / इन में से किसी भी सचित्त वनस्पति का सेवन नहीं करना चाहिए / सचित्त वनस्पति की तरह सचित्त मृत्तिका और जलादि के विषय में भी जानना चाहिए /