________________ 000 -00 चतुर्थी दशा . हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 105 अथ का सा मति-सम्पत् ? मति-सम्पच्चतुर्विधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-अवग्रहमति-सम्पत्, ईहा-मति-सम्पत् अवा(पा)य-मति-सम्पत्, धारणा-मति- सम्पत् / / अथ का सावग्रह-मति-सम्पत् ? अवग्रह-मति-सम्पत् षड्विधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-क्षिप्र-मवगृह्णाति, बह्नवगृह्णाति, बहुविधमवगृह्णाति, ध्रुवमवगृह्णाति, अनिश्रितमवगृह्णाति, असंदिग्धमवगृह्णाति / सेयमवग्रहमति-सम्पत् / एवमीहा-मतिरपि / एवमवाय-मतिरपि / अथ का सा धारणा-मति-सम्पत् ? धारणा-मति-सम्पत् षड्विधा प्रज्ञप्ता, तद्यथा-बहु धारयति, बहुविधं धारयति, पुरातनं धारयति, दुर्द्धरं धारयति, अनिश्रितं धारयति, असंदिग्धं धारयति / सेयं धारणा-मति-सम्पत् / / 6 / / ___ पदार्थान्वयः-से किं तं-वह कौन सी मइ-संपया-मति-सम्पदा है ? गुरू कहते हैं मइ-संपया-मति-सम्पदा चउ-विहा–चार प्रकार की पण्णत्ता-प्रतिपादन की हैं तं जहा-जैसे उग्गह-मइ-संपया-सामान्य अवबोध रूप मति-सम्पदा ईहा-मइ-संपया-विशेष अवबोध रूप ईहा-मति-सम्पदा अवाय-मइ-संपया-निश्चय रूप अवाय-मति संपदा धारणा-मइ-संपया-धारणा रूप धारणा-मति-सम्पदा से किं तं-हे भगवन् ! कौन सी वह उग्गह-मइ-संपया-अवग्रह-मति-सम्पदा है ? गुरू कहते हैं उग्गह-मइ-संपयाअवग्रह-मति-सम्पदा छ-विहा-छ: प्रकार की पण्णत्ता-प्रतिपादन की है तं जहा-जैसे खिप्पं उगिण्हेइ-शीघ्र ग्रहण करता है बहु उगिण्हेइ-बहुत प्रश्नों को एक ही बार ग्रहण करता है बहु-विहं उगिण्हेइ-अनेक प्रकार से ग्रहण करता है धुवं उगिण्हेइ-निश्चल भाव से ग्रहण करता है अणिस्सियं उगिण्हेइ-निश्राय रहित ग्रहण करता है असंदिद्धं-सन्देह रहित उगिण्हेइ-ग्रहण करता है / से तं-यही उग्गह-मइ-संपया अवग्रह-मति-सम्पदा है एवं-इसी प्रकार ईहा-मड-वि-ईहा-मति भी जाननी चाहिए एवं-और इसी प्रकार अवाय-मइ-वि-अवाय-मति के विषय में भी जानना चाहिए / से किं तं-कौन सी वह धारणा-मइ-संपया-धारणा-मति-सम्पदा है ? (गुरू कहते हैं) धारणा-मइ-संपयाधारणा-मति-सम्पदा छ-विहा-छ: प्रकार की पण्णत्ता-प्रतिपादन की है तं जहा-जैसे बहु धरेइ-बहुत धारण करता है बहु-विहं धरेइ-अनेक प्रकार से धारण करता है पोराणं-पुरानी बात को धरेइ-धारण करता है दुद्धरं धरेइ-भंगादि दुर्धर को धारण