________________ है तृतीय दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / / केवल हित के ही लिए है / इसी नीति का अनुसरण करते हुए समय देखकर गुरू का विरोध करने से भी शिष्य को कोई दोष नहीं होता / किन्तु ध्यान रहे कि केवल धर्म-रक्षा के लिए ही ऐसा करना चाहिए, अन्यथा नहीं / यदि रत्नाकर के साथ द्वेष-बुद्धि से कोई ऐसा करेगा तो उसको आशातना अवश्य लगेगी। . अब सूत्रकार उक्त विषय की ही आशातना का निरूपण करते है:... सेहे रायणियस्स कहं कहेमाणस्स णो सुमणसे भवइ आसायणा सेहस्स / / 27 / / - शैक्षो सत्निकस्य कथां कथयतो नो सुमना भवत्याशातना / शैक्षस्य / / 27 / / . पदार्थन्वयः-सेहे-शिष्य रायणियस्स-रत्नाकर के कह-कथा कहेमाणस्स-कहते हुए णो सुमणसे-प्रसन्न होने के स्थान पर उपहत मन हो जाये (दत्त-चित्त होकर न सुने) तो उसको आसायणा-आशातना भवइ-होती है / ___मूलार्थ-शिष्य रत्नाकर के कथा करते हुए यदि उपहत-मन हो जाये तो उसको आशातना होती है / टीका-इस सूत्र में बताया गया है कि गुरू के वचनों को सुनकर शिष्य को सदा प्रसन्नचित्त होना चाहिए; क्योंकि गुरू-वचन अमूल्य शिक्षाओं के भण्डार होते हैं और जीवन को पवित्र बनाने में सदा सहायक होते हैं / कहने का आशय निकला कि गुरू के वचन दत्त-चित्त होकर तथा प्रसन्नता-पूर्वक सुनने चाहिए और गुरू के कथा करते हुए कभी निद्रा ओर आलस्य के वशीभूत नहीं होना चाहिए ना ही उनका किसी प्रकार उपहास करना चाहिए / यदि रत्नाकर के कथा करते हुए कोई शिष्य निद्रा और आलस्य के वशीभूत होकर मन की अप्रसन्नता प्रकट करे, चित्त में दुःखित हो, किसी प्रकार भी गुरू-वाक्यों का उपहास करे या गुरू-वाक्यों में अपने कुतर्कों से निरर्थक दोषारोपण करने लगे उसको अवश्य ही आशातना लगेगी। त। -