________________ -amana श 22 दशाश्रुतस्कन्धसूत्रम् प्रथम दशा 3 पोराणाणं अधिकरणाणं खामिय विउसविआणं पुणोदीरेत्ता भवइ / / 13 / / पुरातनानामधिकरणानां क्षमापितानां व्यपशमितानां वा पुनरुदीरयिता भवति / / 13 / / पदार्थान्वस:-पोराणाणं-पुरातन, अधिकरणाणं-कलह (जो), खामिय–क्षमित हैं, विउसविआणं-उपशान्त हो गये हैं (उनका जो), पुणोदीरित्ता-फिर उदीरण करने वाला, भवइ-है / मूलार्थ-क्षमापन द्वारा उपशान्त पुराने अधिकरणों का फिर से उदीरण करने वाला (उभारने वाला) / टीका-इस सूत्र में यह बताया गया है कि क्षमापन से शान्त कलहों को फिर से उभारना असमाधि का एक मुख्य कारण है; क्योंकि ऐसा करने से अनेक व्यक्तियों का शुभ-कर्म से हटकर दुष्कर्म में लग जाने का भय है / तथा इस से आत्म और संयम विराधना सहज में ही जाती हैं; क्योंकि अधिकरण शब्द का अर्थ है : अधः करोति आत्मनः शुभपरिणाममित्यधिकरणम्, अधृतिकरणं वा कलह इत्यर्थः" जो आत्मा के शुभ भावों को नीचे कर देता है तथा अधृति (अशान्ति) उत्पन्न करने वाला है उसे अधिकरण कहते हैं | कलह या अधिकरण के कारण आत्मा असमाधि में प्रविष्ट होता है, इससे ही तप का नाश, यश की हानि, ज्ञानादि रत्न-त्रय का उपघात तथा संसार में परस्पर द्वेष की वृद्धि होती सिद्ध यह हुआ कि समाधि की रक्षा के लिए पुरातन कलह-युक्त बातों का स्मरण न करना चाहिये / प्रत्येक व्यक्ति को इससे शिक्षा लेनी चाहिए कि शान्ति के समय के उपस्थित होजाने पर पुरातन कलहों की स्मृति न करनी ही उचित है; क्योंकि इससे असमाधि बढ़ जाने का भय रहता है / अतः समाधि इच्छुक व्यक्ति को कलहादि से पृथक रहकर ही समाधि प्राप्त करनी चाहिए जिससे उसकी आत्मा का कल्याण हो / अगले सूत्र में सूत्रकार वर्णन करते हैं कि कलहादि का त्याग कर प्रत्येक व्यक्ति को केवल स्वाध्याय में ही निरत होना चाहिये / किन्तु अकाल में स्वाध्याय भी असमाधि का कारण होता है /