________________ द्वितीया दशा हिन्दीभाषाटीकासहितम् / 334 पदार्थान्वयः-आउसं-हे आयुष्मन् शिष्य, मे-मैं सुयं-सुना है, तेणं-उस, भगवया-भगवान् ने, एवं-इस प्रकार, अक्खायं-प्रतिपादन किया है, इह-इस जैन-शासन व लोक में, खलु-निश्चय से, थेरेहिं-स्थविर, भगवंतेहिं-भगवन्तों ने, एकबीसं-इक्कीस, सबला-शबल-दोष, पण्णत्ता-प्रतिपादन किए हैं / शिष्य ने प्रश्न किया, कयरे-कौन से, खलु-निश्चय से, थेरेहि-स्थविर, भगवंतेहिं-भगवन्तों ने, ते-वे, एकबीसं-इक्कीस, सबला-शबल-दोष, पण्णत्ता–प्रतिपादन किये हैं ? गुरु उत्तर देते हैं / इमे-ये, खलु-निश्चय से, ते-वे, एकबीसं-इक्कीस, सबला-शबल-दोष, थेरेहि-स्थविर, भगवंतेहिं-भगवन्तों ने, पण्णत्ता-प्रतिपादन किये हैं, तं जहा-जैसे:___मूलार्थ-हे आयुष्मन् शिष्य ! मैंने सुना है उस भगवान् ने इस प्रकार प्रतिपादन किया है, इस जैन-शासन में स्थविर भगवन्तों ने इक्कीस शबल-दोष प्रतिपादन किए हैं / शिष्य ने प्रश्न किया कि कौन से इक्कीस शबल-दोष स्थविर भगवन्तों ने प्रतिपादन किए हैं ? गुरु ने उत्तर दिया कि स्थविर भगवन्तों ने वक्ष्यमाण इक्कीस शबल-दोष प्रतिपादन किए हैं / जैसे :- टीका-इस सूत्र में पहली दशा की तरह प्रस्तुत दशा का विषय-शबल-दोषों का वर्णन-गुरु शिष्य के प्रश्नोत्तर रूप में ही वर्णन किया गया है / साथ ही इस बात को भी स्पष्ट किया गया है कि श्री भगवान् के वाक्य प्राणि-मात्र के लिए उपादेय (ग्रहण करने योग्य) हैं, क्योंकि भगवान् प्राणि-मात्र के हितैषी हैं अतः उनके वाक्य भी प्राणियों के लिए हित-कारक हैं / - सूत्र में “स्थविर भगवन्तों ने शबल दोष के इक्कीस भेद प्रतिपादन किए हैं। यह कथन "अजिणा जिणसकासा जिणा इव अवितह-वागरमाणा” सूत्रार्थ की सिद्धि के लिए है; अर्थात् स्थविर भगवान् जिन तो नहीं हैं किन्तु जिन के समान हैं और जिन के समान यथार्थ-वक्ता भी हैं / अतः उक्त विषय स्थविर-प्रतिपादित होने पर भी जिन-प्रतिपादित ही समझना चाहिए / यह दोनों लोकों में हितकारी हैं, अतः प्राणिमात्र को इसे ग्रहण करना चाहिए और भगवत्-कथन होने के कारण विनय-पूर्वक सीखना चाहिए / प्रश्न यह हो सकता है कि उक्त विषय भगवान् ने ही प्रतिपादन किया है इस में क्या प्रमाण है ? हो सकता है कि अन्य किसी व्यक्ति ने इसकी रचना कर भगवान् के