Book Title: Chhahadhala
Author(s): Daulatram Pandit, Hiralal Nyayatirth
Publisher: B D Jain Sangh

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Page 13
________________ छहढाला स आदिकी दूसरी पर्याय नहीं पाई, अथवा जिन्होंने कभी भी निगोदके सिवाय दूसरी पर्याय न तो पाई है और न आगे पावेंगे, उन्हें नित्यनिगोद कहते हैं। जो निगोदसे निकल कर 3 स आदि दूसरी पर्याय धारण कर फिर निगोद में उत्पन्न होते हैं, उन्हें इतरनिगोद कहते हैं, इसीका दूसरा नाम चतुर्गतिनिगोद या नित्यनिगोद भी हैं। शंका- नित्यनिगोदके स्वरूप में ' अथवा ' कह कर दो प्रकार का लक्षण क्यों कहा ? समाधान - नित्यनिगोद में दो प्रकारके जीव रहते हैं एक अत्यन्त भाव-कलंक-प्रचुर, दूसरे अल्प भाव -कलंक - प्रचुर । इनमें से अत्यन्त दुर्लेश्यारूप संक्लेश परिणामोंकी प्रचुरता बहुलता वाले जीवोंने अनादि कालसे आज तक न तो निगोद पर्यायको छोड़ा है और न आगे अनन्त काल तक कभी भी छोड़ेंगे, किन्तु सदाकाल निगोदरूप पर्यायको ही धारण किये रहेंगे । किन्तु जो जीव अल्प भाव - कलंक -प्रचुर होते हैं, उन्होंने यद्यपि आज तक निगोद पर्यायको नहीं छोड़ा है, किन्तु आगे जाकर और कालब्धिको पाकर वे निगोद से निकलकर त्रस आदि की पर्यायको प्राप्त हो सकेंगे। ऐसे जीवोंको भी नित्यनिगोद कहा है । प्रस्तुत प्रकरण में ग्रन्थकार इस दूसरे प्रकारके नित्य निगोदको लक्ष्यमें रखकर ही अपना वर्णन कर रहे हैं, क्यों कि, आगे के छंद में वे "निकसि भूमि जल पावक भयो” इत्यादि वाक्य कह रहे हैं ।

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