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पंचायती राज्यकी कल्पना
क्षुद्र रूपमें न देखकर भावी परिणामोंको सहस्रगुणा करके देखें और उसे उत्पन्न न होने देने की पूरी सावधानी रखें।
( पंचायती राज्य की कल्पना ) अविनीतस्वामिलाभादस्वामिलाभः श्रेयान् ॥१४॥ अयोग्यको राजा बनानेसे किसीको राजा न बनानेमें राष्ट्रका कल्याण है । अयोग्य एकाधिपत्यसे राज्यको पंचायती राजका रूप देना हितकर है।
विवरण- नीतिहीन, सत्यहीन, समुद्धत, अन्यायी, अत्याचारी, स्वार्थी मनुष्यको राजा बनानेसे राजहीन रहना ही राष्टके लिये हितकारी होता है। राजा बनानेके लिये कोई विनीत व्यक्ति न मिले तो राजा बनानेकी योग्यता तथा अधिकार रखनेवाले सुशिक्षित जनमतका मनिवार्य कर्तव्य हो जाता है कि राज्यतन्त्रको अपने ही हाथों में रखकर गणतन्त्रताको स्थापना कर ले। किसीको राजा बनाना राकी अनिवार्य मावश्यकता नहीं है। सुम्य. वस्थामात्र राष्ट्रकी अनिवार्य रूपसे वांछनीय मावश्यकता है। सत्यहीन राजाको सिंहासनारूढ न रहने देना तथा सत्यानिष्टको ही राजा बनाना जनमतका ही उत्तरदायित्व है और यह उसीका पवित्र कर्तव्य भी है। जन. मतकी सत्यानुकूल सामूहिक इच्छायें ही राजशक्ति हैं । यों भी कह सकते हैं कि सत्य ही राजशक्ति है। देशका जनमत सत्यहीन व्यक्तिको राजा न बनाने या हटा देनेपर अपनी स्वतन्त्र सामूहिक चिन्ताशक्तिसे अशान्तिकार दमन करनेवाली शक्तियों को अपने हाथमें लेनेका अवसर पाता है। जब देशका सुशिक्षित जनमत मिल-जुलकर अपनी सामूहिक सदिच्छासे राज्य सत्ता संभालनेके लिये खडा हो जाता है तब उसके लिये राज्यसंचालन कठिन काम नहीं रहता । परिवर्तनसे डरकर सत्यहीन राजाको राजा रहने देने और सत्यहीन राजकर्मचारीको राज कर्मचारी बनाये रखनेमें, यह दोष रहता है कि ये लोग अपने पदोंपर रहकर प्रजाकी अशान्तिदमनकारिणी शक्तियोको दाबकर बैठ जाते हैं और देश में अशान्तिकी ज्वालाको भडकते रहनेको