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धिकारः]
भाषाटीकोपेतः।
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ज्वरहरशाकद्रव्याणि ।
असमयमें भोजन न करना चाहिये । अहित भोजन उसकी
आयु या सुखके लिये हितकर नहीं हो सकता ॥ ४६॥पटोलपत्रं वार्ताक कुलकं कारवेल्लकम् ।। कर्कोटकं पर्पटकं गोजिहां बालमूलकम् ॥४१॥
ज्वरपाचनानि । पत्रं गुडूच्याः शाकार्थ ज्वरिताय प्रदापयेत् ।।
लंघन स्वेदन कालो यवाग्वस्तिक्तको रसः॥४७॥ ज्वरमें परवलके पत्ते, बैंगन, परवल, करेला, खेखसा| पाचनान्यविपक्कानां दोषाणां तरुणे ज्वरे । (पढ़ोरा अथवा वनपरौरा ), पित्तपापड़ा, जंगली गोभी, कच्ची | मूली तथा गुर्चके पत्तोंका शाक देना चाहिये ॥४१॥
लंघन, पसीना निकालना, समयकी (आठ दिनकी ).
प्रतीक्षा, यवागू व तिक्तरस (पेया, यवागू आदिके संस्कापथ्यावश्यकता।
रमें ) नवीन ज्वरमें आम दोषका पाचन करते हैं ॥४७॥ज्वरितो हितमश्नीयाद्यद्यप्यस्यारुचिर्भवत् ॥ ४२ ॥ ज्वरस्य तारुण्यादिनिश्चयः। अन्नकाले ह्यभुजानः क्षीयते म्रियतेऽपि वा।।
आसप्तरात्रं तरुणं ज्वरमाहुर्मनीषिणः ॥४८॥ भोजनका समय निश्चित हो जानेपर अरुचि होनेपर।
मध्यं द्वादशरात्रं तु पुराणमत उत्तरम् । भी हितकारक पदार्थ खाना ही चाहिये । उस समय भोजन न करनेसे बल क्षीण होता है अथवा मृत्यु हो जाती |
सात रात्रि पर्यन्त ( ज्वरोत्पत्तिदिवससे ) ' तरुण ' ज्वर, बारह रात्रि पर्यन्त 'मध्य' ज्वर, इसके अनन्तर 'पुराण' ज्वर'
विद्वान लोग मानते हैं ॥४८॥ अरुचिचिकित्सा । अरुची मातुलुङ्गस्य केशरं साज्यसैन्धवम् ॥४३॥
तत्र चिकित्सा। धात्रीद्राक्षासितानां वा कल्कमास्येन धारयेत् । । पाचनं शमनीयं वा कषायं पाययेत्तु तम् ॥ ४९ ॥
अरुचिमें बिजौरे नीम्बूका केशर ( रसभरी थेलियां ) घी व | ज्वरितं षडहेऽतीते लध्वन्नप्रतिभोजितम् । सेंधा नमकके साथ अथवा आमला, मुनक्का व मिश्रीकी चटनी।
सप्ताहात्परतोऽस्तब्धे सामे स्यात्पाचनं ज्वरे ॥५०॥ मुखमें रखना चाहिये ॥४३॥
निरामे शमनं स्तब्धे सामे नौषधमाचरेत् । सातत्यात्स्वाद्वभावाद्वा पथ्यं द्वेष्यत्वमागतम् ॥४४॥ ज्वरवालेको ६ दिन बीत जानेपर अर्थात् सातवें दिन हलका कल्पनाविधिभिस्तैस्तैः प्रियत्वं गमयेत्पुनः । | पथ्य देकर आठवें दिन भी यदि दोष साम हों तो पाचन सदा एक ही वस्तु खानेसे अथवा स्वादिष्ठ न होनसे यदि कषाय, यदि निराम हों तो शमनकारक कषाय, पिलाना पथ्य अच्छा न लगता हो तो भिन्न भिन्न कल्पनाओं (संयोग चाहिये । सात दिनके अनन्तर यदि दोष साम होनेपर भी संस्कारादि) से पथ्यको पुनः रुचिकारक बनावे ॥ ४४ ॥- निकल रह हों तो पाचन कषाय देना चाहिये । निराम हों तो
शमन कषाय देना चाहिये । और यदि दोष साम तथा विबद्ध भोजनसमयः ।
हों तो औषध न देना चाहिये ॥४९॥५०॥ ज्वरितं ज्वरमुक्तं वा दिनान्ते भोजयेल्लघु ॥४५॥ श्लेष्मक्षये विवृद्धोष्मा बलवाननलस्तदा ।
आमज्वरलक्षणम् । जिसे ज्वर आ रहा हो अथवा जो शीघ्र ही ज्वरमुक्त हुआ
लालाप्रसेको हृल्लासहृदयाशुद्धथरोचकाः ॥५१॥ हो उसे सायंकाल ( अपराह्न ) में हलका भोजन देना चाहिये ।।
तन्द्रालस्याविपाकास्यवैरस्यं गुरुगात्रता। उस समय कफ क्षीण रहनेसे गरमी बढ़ती है, अतएव अग्नि | दीप्त होता है ॥ ४५ ॥
क्षुन्नाशो बहुमूत्रत्वं स्तब्धता बलवावरः।। ५२॥ __ अपथ्यभक्षणनिषेधः।
आमज्वरस्य लिङ्गानि न दद्यात्तत्र भेषजम् ।
भेषजं ह्यामदोषस्य भूयो ज्वलयति ज्वरम् ॥५३ ॥ गुर्वभिष्यंद्यकाले च ज्वरी नाद्यात्कथञ्चन ॥४६॥ नहि तस्याहितं भुक्तमायुषे वा सुखाय वा। १ तरुणज्वर लिखकर भी अविपक्व दोष जो लिखा है ज्वरीको गुरु (द्रव्यगुरु-लड्डूआदि, मात्रागुरु-अधिक अतः मध्यज्वरमें भी यदि दोष आम हो तो पाचन ही भोजन ) अभिष्यन्दि ( दोष-धातु-मल-स्रोतो रोधक) तथा देना चाहिये। ...