________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
(१०) ग्रन्थरूप सूक्तिसेही नहीं है, प्रत्यक्षमें कहे जानेवाले सद्वचन भी सूक्तिही हैं । तथा अपनी तीनों रचनाओंमें अपने सम्बन्धमें और कुछ न कहकर, अपने उपकारी रूपमें केवल आशाधरजीके स्मरण करमेसेभी यही अधिक संगत प्रतीत होता है कि एक कुमार्गगामी व्यक्तिको अपने सद्वचनोंसे सम्बोध सम्बोधकर पं. आशाधरजीने उसे अर्हहास बना दिया था। अतः यही अधिक संभव लगता है कि कविवर अर्हदास पं. आशाधरजीके लघु समकालीन रहे हों। यदि यह संभावना ठीक हो तो उनका समय विक्रमकी तेरहवीं शतीका अन्तिम चरण और चौदहवीं शतीका प्रथम चरण होना चाहिये ।
... अनुवादके सम्बन्धमें .. अन्तमें अनुवादके सम्बन्धमें भी दो शब्द कह देना अनुचित न होगा। ग्रन्थकी जो प्रतिलिपि या प्रेसकापी मुझे प्राप्त हुई- वह सन्तोषजनक नहीं थी। अन्य प्रति कहींसे मिली नहीं। अतः उसीके ऊपरसे कुछ रफ़सा अनुवाद करके भेज दिया था यहभी आशा नहीं थी कि वह जल्दी छपही जायेगा। अतः जो कुछ लिखा उसका प्रूफभी मैं नहीं देख सका इससे एक दो जगह अनुवादमें कुछ विशृंखलतासी होगई है । उदाहरणके लिये नौवे पद्यमें कुछ वाक्यांश अतिरिक्त छप गया है । आशा है विद्वान्पाठक सुधार लेंगे। यह अनुवाद डॉ. ए. एन. उपाध्ये कोल्हापुरकी प्रेरणासे हुआ है उनका अत्यन्त आभारी हूं।
बनारस दीप-मालिका
कैलासचन्द्र शास्त्री. वीर नि. सं. २४८१:
For Private And Personal Use Only