Book Title: Bhavyajan Kanthabharanam
Author(s): Arhaddas, Kailaschandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 70
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir भव्यजनकण्ठाभरणम् ★★★ *** 43 कारण उन्हें अकलंक कहते हैं । इन्द्रियोंपर विजय प्राप्त कर लेने से वे 'जिन' कहे जाते हैं। सबके लिये कल्याणकारी होने से उन्हें शिव कहते हैं | अपने ज्ञानके द्वारा समस्त जगत् व्याप्त होने के कारण विष्णु कड़े जाते हैं । जन्ममरण के चकसे बाहर होनेसे उन्हें अज' कहते हैं । और कर्म शत्रुओंको जीत लेनेके कारण वे जितारि कहे जाते हैं ॥ १५० ॥ 1 ' कल्याणकालेषु तथा स सद्योजातश्च वामश्च भवेदघोरः । ईशान इन्द्रादिकृतोत्सवेषु क्रमेण वै तत्पुरुषश्च नाम्ना ॥ १५१ ॥ अर्थ - जन्मादि कल्याणकालोंमें अर्थात् जिन जब माताके उदरमें आये तब ने उन्हें ' सद्योजात' नाम दिया । जन्मके अनन्तर मेरुपर्वतपर क्षीरजल से स्नान कराया तब इन्द्रने उनका 'वाम' नाम रखा । दीक्षाकाल में वे अघोर नामसे प्रसिद्ध हुए । केवलज्ञान के समय ईशान ' और मोक्ष कल्याणके समय ' तत्पुरुष ' नाम रख दिया है ।। १५१ । ' स्वर्गावतारं जननाभिषेकं निष्क्रान्तिमिद्धं निरपायबोधम् । संप्राप्य धर्म प्रतिपाद्य सार्वं भजेत्स पश्चात्परिनिर्वृर्ति च ॥ १५२ ॥ अर्थ- स्वर्गसे अवतरण, जन्म अभिषेक, गृहत्यागकर जिनदीक्षा और कभी नष्ट न होनेवाले केवलज्ञानको प्राप्त करके तथा सबके लिये हितकर धर्मका उपदेश देकर उसके पश्चात् वह जिनेन्द्रदेव मोक्ष प्राप्त करते हैं ॥ १५२ ॥ मुक्तोsभः कर्मभिरभिः स्वैर्गुणैरमुक्तः परिनिर्वृतोऽयम् । आभाति मालिन्यविमुक्तदीधित्यमुक्तचामीकरभासुरात्मा ॥ १५३ ॥ १ ल. गणैरमुक्तः For Private And Personal Use Only -

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