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भव्यजनकण्ठाभर
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___अर्थ- यह सम्यक्चारित्र महान् मोक्ष पुरुषार्थको देनेवाला है। उसके दो भेद हैं- एक गृहस्थोंका अणुव्रत और दूसरा श्रेष्ठ मुनियोंका महाव्रत ।। २१६ ॥ ___ मोक्षके मार्गमें मतभेद -- कश्चित्सुहग्धीचरितान्यमूनि न मन्यते त्रीण्यपि मोक्षभूतैः । द्वे द्वे त्रयोऽमीपु तथैकमेकं त्रयश्च सतापि कुदृष्टयस्ते ।। २१७ ।। ___अर्थ- कुछ लोग इन सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक्: चारित्रको मोक्षका मार्ग नहीं मानते। कुछ लोग इन तीनों से दोकोही मोक्षका मार्ग मानते हैं । अर्थात् कुछ लोग सम्यग्दर्शन और सम्यग्ज्ञानको मोक्षका मार्ग मानते हैं। कुछ लोग सम्यग्दर्शन और सम्यक् चारित्रको मोक्षका मार्ग मानते हैं। कुछ लोग सम्यग्ज्ञान और सम्यक्चारित्रको मोक्षका मार्ग मानते हैं। तथा कुछ लोग इन तीनोंमेंसे एक एकको मोक्षका मार्ग मानते हैं। अर्थात् कुछ लोग केवल सम्यग्दर्शनकोही मोक्षका मार्ग मानते हैं, कुछ लोग केवल सम्यग्ज्ञानकोही मोक्षका मार्ग मानते हैं और कुछ लोग केवल सम्यक्चारित्रकोही मोक्षका मार्ग मानते हैं। ये सातोंही मिथ्यादृष्टि हैं ।। २१७ ।।
विशुद्धवृत्ते सति सम्यगेव विज्ञाय कुर्वन्नहितानिवृत्तिम् ।। हिते प्रवृत्तिं च बुधः कृतार्थस्तत्तत्रयं साधु समस्तमेव ॥ २१८ ॥
अर्थ- त्रिशुद्ध सम्यग्दर्शनके होनेपर सम्यक् प्रकारसे तत्त्वोंको जानकरही ज्ञानी पुरुष अहितका त्याग करता है और हितमें प्रवृत्ति करता है । इस लिये ये तीनों मिलकरही मोक्षका मार्ग हैं ।। २१८॥
१ ल. मोक्षमार्गम् । २ ल. विशुद्धदृक्त्वे
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