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भव्यजनकण्ठठार
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अर्थ-- वह स्त्रीपना, पुरुषपना और नपुंसकपनेसे रहित होता है, उसमें बालपन, जवानी और बुढ़ापा नहीं होता, न वह मनुष्य तिर्यश्च, देव और नारक भावसे युक्त होता है, और न उसमें एकत्व द्वित्व और बहुत्वका भेद होता है ॥ १६७ ॥
अब अजीव तत्त्वका कथन करते हैंअनीवतत्त्वं शरसंख्यमत्र स्कन्धाणुभेदाद्विविधश्च षोढा । स्पर्शादिमान्यो भवति द्विरुक्तस्थूलादिभेदात्स तु पुद्गलः स्यात्॥१६८|| ____ अर्थ-- अजीव तत्त्व पांच हैं--पुद्गल, धर्म, अधर्म, आकाश और काल । उनमेंसे जिसमें स्पर्श, रस, गन्ध और रूप पाया जाता है उसे पुद्गल कहते हैं । उसके दो भेद हैं स्कन्ध और परमाणु । सबसे सूक्ष्म अविभागी पुद्गल द्रव्यको परमाणु कहते हैं। और दो तीन आदि संख्यात असंख्यात और अनन्त परमाणुओंके मेलसे जो बनता है उसे स्कन्ध कहते हैं । पुद्गलद्रव्यके छै भेद भी हैंस्थूलस्थूल, स्थूल, स्थूल-सूक्ष्म सूक्ष्म-स्थूल, सूक्ष्म और सूक्ष्म-सूक्ष्म । जमीन पर्वत वगैरह स्कन्धोंको स्थूलस्थूल कहते हैं। घी, तेल, पानी आदि तरल स्कन्धोंको स्थूल कहते हैं । छाया, आतप वगैरहको स्थूल-सूक्ष्म कहते हैं । चक्षुके सिवा शेष चार इन्द्रियोंके विषय स्पर्श, रस, गन्ध और शब्दको सूक्ष्म स्थूल कहते हैं। कर्मरूप होनेके योग्य पुद्गल स्कन्धोंको सूक्ष्म कहते हैं । और परमाणुको सूक्ष्म-सूक्ष्म कहते हैं ॥ १६८॥ धर्मो झषस्येव जलं गतौ स्यात्स्वयं प्रवृत्तस्य गतेः सहायः । स्थितावधर्मः पथिकस्य तस्याश्छायेव जीवस्य च पुद्गलस्य ॥१६९।।
१ ल. तस्य
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