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७२ *************************** भव्यजनकण्ठाभरणम्
पालने में रेवती रानी, पांचवे उपगूहन अंगको पालनेमें जिनेन्द्रभक्त सेठ, छठे स्थितिकरण अंगको पालने में वारिषेण, सातवें वात्सल्य अंगमें मुनि विष्णुकुमार और आठवें प्रभावना अंगमें वज्रकुमार लोकमें प्रसिद्ध हुए हैं ॥ १९८ ॥
आस्तिक्य आदिका स्वरूप -- आस्तिक्यमस्तीति समस्ततत्त्वं मतिर्भवक्लेशभयं द्वितीयः । आद्यक्रुधादिप्रलयः प्रशान्तिरशेषसत्त्वेषु कृपानुकम्पा ॥ १९९ ॥ __ अर्थ- जिनेन्द्र भगवान के द्वारा कहे हुए समस्त तत्त्व हैं इस प्रकारकी मतिको आस्तिक्य कहते हैं । संसारके कष्टोंसे भयभीत होना संवेग है। अनन्तानुबन्धी क्रोध, मान, माया, लोभका नष्ट होना प्रशम है। और समस्त प्राणियोंपर दया करना अनुकम्पा है ।। १९९॥
सम्यग्दर्शनका माहात्म्यकालायसानीव रसानुषङ्गात्कल्याणतां त्रीणि सुदृष्टियोगात् । ज्ञानानि मिथ्यात्वमलीमसानि चिरन्तनान्यप्यचिरेण यान्ति ॥२००
अर्थ- जैसे पारेके योगसे लोहा सोना हो जाता है वैसेही सम्यग्दर्शनके योगसे अनादिकालसे मिथ्यात्वसे मलिन हुए कुमति कुश्रुत और कुअवधिज्ञान तुरन्तही मति, श्रुत और अवधिज्ञान हो जाते हैं ॥ २०० ॥
असंयतोऽप्यच्छसुदृष्टिरङ्गी मिथ्यात्वभावैः खलु बन्धनीयम् । नपुंसक नारकमायुरेतैराद्यैः कषायैरपि बन्धनीयम् ॥ २०१ ।। स्त्रीवेदनीचैःकुलतिर्यगायुर्बध्नाति यद्वन्धनिमित्तहानिः । न स्वस्य तत्पण्डकनारकत्वं स्त्रीनीचतिर्यक्त्वमपि स्पृशेत ॥२०२॥
१ ल. तद्बन्धनिमित्तहानेः ।
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