Book Title: Bhavyajan Kanthabharanam
Author(s): Arhaddas, Kailaschandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 61
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ४४★★ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ★★★ भव्यजनकण्ठाभरणम् समस्त दोष वगैरह नष्ट होगये हों, किन्तु ऐसा कहनाभी ठीक नहीं है, जैसे मलसे रहित शुद्ध स्वर्ण होता है वैसेही समस्त दोषों और आवरणोंसे मुक्त कोई महापुरुष अवश्य होता है; क्यों कि जिसमें हीनाधिकता पाई जाती है अर्थात् जो घटता और बढ़ता रहता है वह कहीं पर बिल्कुल नष्ट हो जाता है । जैसे खानसे निकले हुए सोने में मैलकी पराकाष्ठा होती है फिर उपाय करने से वह घटते घटते एकदम क्षीण हो जाता है वैसेही हम लोगों में दोष और आबरण की हानि हीनाधिक पाई जाती है अतः किसी पुरुषमें उसका बिल्कुल अभाव हो जाता है ॥ १२२ ॥ इस प्रकार आप्तके अन्य गुणों को सिद्ध करके अब उसकी सर्वज्ञताका समर्थन करते हैं- तत्सूक्ष्मदूरान्तरिताः पदार्थाः कस्यापि पुंसो विशदा भवन्ति । व्रजन्ति सर्वेऽप्यनुमेयतां यदेतेऽनलाद्या भुवने यथैव ॥ १२३ ॥ अर्थ- संसारमें जो परमाणु वगैरह सूक्ष्म पदार्थ हैं, राम रावण बगैरह अतीत पदार्थ हैं, और हिमवान् वगैरह दूरवर्ती पदार्थ हैं, वे किसीके प्रत्यक्ष अवश्य हैं; क्यों कि इन सभी पदार्थों को हम अनुमानसे जानते हैं। जो पदार्थ अनुमानसे जाना जा सकता है वह किसीकेद्वारा प्रत्यक्षभी देखा जाता है। जैसे पहाडमें छिपी हुई अग्निको हम दूरसे उठता हुआ धुआं देखकर अनुमानसे जानते हैं और पीछे उसे प्रत्यक्षसे जान लेते हैं ॥ १२३ ॥ • इति प्रमाणेन समर्थितो यस्त्रिलोकनाथैरपि सेव्यमानः । आप्तः स वर्यो जगति त्रिभेदे काले च तत्स्याजिन एक एव ॥ १२४ For Private And Personal Use Only

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