Book Title: Bhavyajan Kanthabharanam
Author(s): Arhaddas, Kailaschandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 39
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ************************* ** भव्यजनकण्ठाभरणम् रामो न पूज्यो यदबोधि नैष प्रियापहारं भ्रमितस्तदाभूत् । दग्धश्च चिन्ताज्वरदाहशोकैर्जघान सैन्येन समं दशास्यम् ॥ ५४ ।। ___ अर्थ- रामचन्द्रभी पूज्य नहीं हैं क्यों कि वे सीताके अपहरणको नहीं जान सके और उसके हरे जानेपर एकदम पागल जैसे होगये। तथा चिन्तारूपी ज्वरके दाह और शोकमें उन्हें जला डाला। फिर उन्होंने सेनाके साथ रावणका वध किया ॥ ५४ ॥ वाराननेकानपि राजवंशान्वंशानिवामूनुदमूलयद्यः । रामः परश्वादिरसौ किमर्त्यः पिवत्यपेयं बलभद्ररामः ॥ ५५ ॥ __ अर्थ- जिसने अनेकबार राजवंशोंको वंशों [वांसों ] की तरह जडसे उखाड फेंका वह परशुरामभी कैसे पूज्य हो सकता है ? तथा श्रीकृष्णके बड़े भाई बलभद्ररामभी न पीने योग्य वस्तुओंको अर्थात् मदिराको पीते थे अतः वह भी पूज्य नहीं हो सकते । । भावार्थ- हिन्दुपुराणोंमें परशुरामकोभी एक अवतार माना है। इन्होने इक्कीस बार क्षत्रियोंको मारकर पृथ्वीको क्षत्रियशून्य कर दिया था ॥ ५५ ॥ रागादगच्छत्सुगतोऽन्त्यजामण्यसावनङ्गार्ततयाभ्युपेताम् ।। यो ब्रह्मचर्याय विमुच्य योनिमुद्भिद्य पार्श्वदुदितः सवित्र्याः ॥५६॥ __ अर्थ- कामसे पीडित होकर आई हुई चण्डालनीके साथ बुद्धदेवने रागके वशीभूत होकर रमण किया और जन्मके समय ब्रह्म चर्यकी रक्षाके लिये योनिको छोडकर माताकी कोखकों फाड़कर जन्म लिया ॥५६॥ तथागतो वीक्ष्य रवरान्स्मरातांस्तपोबलाचारुभगा खरी सन् । तदा रतिं तैस्तनुते स्म रागात्ततः स जातो भगवत्समाख्यः ॥५७ ॥ For Private And Personal Use Only

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